कहने को दसशीस से सजा है दशानन
पर यह तो कभी देखा नहीं
अन्दर क्या है
हमने तो पढ़ा है उसके
पांच शीश सुन्दर विचारों से भरे
पर बाक़ी बचे बुराइयों में डूबे
उनका ही संहार किया जाता हर वर्ष
यही कहा जाता
बुराइयों का वध होता हर वर्ष
खुशियों की होती बढ़त
बुराइयों के ऊपर |
यही कारण है हर वर्ष दशहरा मनाने का
खुशियों से बुराइयों को हारने का |
सभी बहुत सजधज कर आते
सब से मिलते जुलते सोना पत्ती देते
राम की सवारी आती पूजन अर्चन उनका होता
रावण दहन करते मन को सुकून मिलता |
आशा सक्सेना
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