जब दुनिया में हम आए,
 रोना
बहुत आया था 
जब धरती पर कदम रखा
पर अन्य सब हुए प्रसन्न
ढोलक पर सोहर गाई गई
नेग बाटे गए
मिठाई बाटी गई 
पर यह भूल गए जीवन है कितना
कठिन 
यह प्रसन्नता सब की है
 कुछ
समय की 
बचपन बीता मालूम ना पडा 
रोना गाना सब चला
किशोरावस्था कब बीती ,
याद नहीं मुझको 
यौवन में कदम रखते ही 
जीवन की कठिनाई दिखी
अपने चारों ओर 
कैसे इससे निजात पाएं .
.जीवन
को सरल बनापाएं 
दिखा बहुत कठिन
 कितनी सलाह
मिलीं 
पर सब की समस्या
 एक समान  नहीं होतीं 
तब प्रभु का आश्रय लिया,
 इस
जीवन से मुक्ति के लिए 
अब मैंने सब को रोता पाया .
खुद हुआ प्रसन्न
मुक्ति मार्ग पर जाकर  कर  |
आशा सक्सेना 
बहुत सुंदर रचना
जवाब देंहटाएंधन्यवाद हरीश जी टिप्पणी के लिए |
हटाएंआदरणीया मैम, सादर प्रणाम । बहुत ही सुंदर भावपूर्ण सृजन । आपकी कविता ने मुझे कबीरदास जी के दोहे का स्मरण कराया " कबीरा, जब हम पैदा भये , जगत हँसा , हम रोए, ऐसी करनी कर चलो, हम हँसें, जग रोए "।इस सुंदर रचना के लिए आभार एवं पुनः प्रणाम ।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद अनंत जी इतनी प्यारी टिप्पणी के लिए |
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