वह कल बीत गया
जब हुए सपने रंगीन ,
मैंने कोरे कागज पर ,
जब नाम लिखा तेरा ,
कागज पर स्याही मिटी नहीं ,
सूख गई और गहरी हुई ,
लिखी इबारत परवान चढ़ी,
फिर  दिल में उतरी और पैठ गई ,
उसे मिटाना सरल नहीं था,
मिट जाये कोई कारण नहीं था ,
जीवन  अविराम चलता गया ,
ग्राफ सफलता का बढ़ता गया ,
खुशियों से दामन भरता  गया |
जैसे-जैसे उम्र बढ़ी ,
एक दिन बैठे-बैठे ,
मैं सोच रही थी कैसा था कल ,
मैनें देखा झाँक  विगत में ,
बीता कल भोला बचपन ,
गुडिया खेली झूला झूली ,
और सुनी कहानी परियों की ,
मैं  सोच-सोच मुस्काने लगी ,
हरियाला सावन जब आया ,
लाल चुनरिया तब ओढ़ी,
मन भीगा तन  भीग गया ,
जब सुनी किलकारी नन्हीं की ,
जीवन में खुशियाँ आने लगीं ,
मैं दिल खोल खुशी  लुटाने लगी |
सब का प्यार दुलार मिला ,
झिलमिल तारों का हार मिला ,
सुखी संसार साकार मिला ,
मैं झूम-झूम कर गाने लगी ,
कब जीवन की शाम हुई ,
ढलती उमर भी सताने लगी ,
कभी हँसी और कभी खुशी ,
बीच-बीच में जाने लगी |
अब यही अभिलाषा बाकी है ,
हर साँस खुशी से भरी रहे ,
आदत मुस्कराने की ,
जो गई नहीं ,
न अब जाये ,
सदा मेरे संग रहे ,
सदा  अंत तक हँसती रहूँ ,
मेरा जीवन रंगीन रहे ,
खुशियों से नाता सदा रहे |
आशा
05 मार्च, 2010
02 मार्च, 2010
हज्जाम रामनारायण
एक राजा था |उसका नाम आर्यमन था |एक दिन जब वह आईने में अपनी सूरत देख रहा था उसे अपने बालों के बीच दो  सींघ  दिखाई दिए |वह बहुत परेशान हो गया|उसे तो अभी बाल भी कटवाने थे |अब बिचारा क्या करता |
बहुत सोच विचार कर उसने अपने एक विश्वासपात्र नौकर को बुलबाया |एक ऐसे नाई को खोजने को कहा जो सींगों
के राज को अपने मन रख कर राजा की कटिंग बना सके |
बहुत खोज के बाद एक नाई राम नारायण को लाया गया |नाई बातों का बादशाह था |उसने राजा के बाल काटे
और सींघ की बात किसी से न कहने का वायदा किया |राजा ने बहुत सारा धन दे कर उसे विदा किया |उसकी पत्नी ने उससे सवाल किया की इतनी दौलत उसे कैसे मिली |रामनारायण बात को टाल गया |पर जब वह सोने लगा उसके
पेट में बहुत दर्द हुआ |रात भर वह बहुत परेशान रहा | दूसरेदिन वह पास के जंगल में गया और चौकन्ना हो कर इधर उधर देखने लगा |जब उसे विश्वास हो गया की उसके सिवाय वहां कोई नहीं है ,वह एक सूखे पेड़ के पास गया और अपने पेट की बात "राजाके दो सींग " पेड़ से कह कर अपने घर आ गया |
थोड़े समय बाद एक कारीगर तबला ,हारमोनियम और सारंगी बनाने के लिए उस पेड़ को काट कर ले गया |जब
सारे उपकरण बन गए ,कारीगर ने अधिक धन पाने की लालसा से उनका प्रदर्शन राज दरवार में करने के लिए राजा
आर्यावर्धन से अनुमति ली |राजा गाने आदि सुनने का बहुत शौक़ीन था |राजा ने दूसरे दिन आने को कहा |
दूसरे दिन कारीगर नियत समय पर राजसभा में अपने बनाये हुए बाजों को ले कर उपस्थित हो गया |राजा की
अनुमति मिलते ही कारीगर ने हारमोनियम पर सुर छेड़ा | हारमोनियम में से सुर निकला "राजा के दो सींग "
सारंगी ने कहा "किनने कही ,किनने कही "| तबला बोला "दुमदुम हज्जाम ने,दुमदुम हज्जाम ने "|
ये शब्द सुन कर राजा गुस्से से लाल पीला होने लगा |उसने तुरंत अपने नौकर को बुलाया | नौकर को डाट कर
रामनारायण नाई को को बुलाने को कहा |नौकर तुरंत उसे बुला लाया |राम नारायण थर थर कांपने लगा |उसने
कहा "महाराज मेरा क्या कसूर है |मैने ऐसा क्या किया है जो आपने मुझे बुलबाया"|
" सच बताओ मेरे राज की बात तुमने किसे बताई थी "राजा ने बहुत गुस्से में आकार उससे पूंछा |
रामनारायण ने कहा "महाराज मैंने तो किसी से भी कुछ नहीं कहा "|राजा को उसकी बात पर विश्वास नही हुआ |
बहुत सख्ती करने पर नाई सोच कर बोला"महाराज मेरी नानी कहती थी की जब कोई बात पेट में न पचे और
पेट बहुत दुखे तब उसे किसी बेजान पेड़ से कह देना चाहिए |न तो बात फैलेगी और न ही पेट दुखेगा |मेरे पेट में
बहुत दर्द हो रहा था |इसी कारन मैंने पेड़ से यह राज कहा "|राजा ने पूंछा "यह दुमदुम हज्जाम कौन है "?
रामनारायण ने बताया की जब वह बहुत छोटा था उसकी नानी उसे दुमदुम कहा करती थी |इसीलिए उसे
दुमदुम हज्जाम के नाम से भी जाना जाता है |किसी ने सच ही कहा है."राज को राज ही रहने दो |दीवारों के भी
कान होते हें "|
आशा
   
वहाँ
बहुत सोच विचार कर उसने अपने एक विश्वासपात्र नौकर को बुलबाया |एक ऐसे नाई को खोजने को कहा जो सींगों
के राज को अपने मन रख कर राजा की कटिंग बना सके |
बहुत खोज के बाद एक नाई राम नारायण को लाया गया |नाई बातों का बादशाह था |उसने राजा के बाल काटे
और सींघ की बात किसी से न कहने का वायदा किया |राजा ने बहुत सारा धन दे कर उसे विदा किया |उसकी पत्नी ने उससे सवाल किया की इतनी दौलत उसे कैसे मिली |रामनारायण बात को टाल गया |पर जब वह सोने लगा उसके
पेट में बहुत दर्द हुआ |रात भर वह बहुत परेशान रहा | दूसरेदिन वह पास के जंगल में गया और चौकन्ना हो कर इधर उधर देखने लगा |जब उसे विश्वास हो गया की उसके सिवाय वहां कोई नहीं है ,वह एक सूखे पेड़ के पास गया और अपने पेट की बात "राजाके दो सींग " पेड़ से कह कर अपने घर आ गया |
थोड़े समय बाद एक कारीगर तबला ,हारमोनियम और सारंगी बनाने के लिए उस पेड़ को काट कर ले गया |जब
सारे उपकरण बन गए ,कारीगर ने अधिक धन पाने की लालसा से उनका प्रदर्शन राज दरवार में करने के लिए राजा
आर्यावर्धन से अनुमति ली |राजा गाने आदि सुनने का बहुत शौक़ीन था |राजा ने दूसरे दिन आने को कहा |
दूसरे दिन कारीगर नियत समय पर राजसभा में अपने बनाये हुए बाजों को ले कर उपस्थित हो गया |राजा की
अनुमति मिलते ही कारीगर ने हारमोनियम पर सुर छेड़ा | हारमोनियम में से सुर निकला "राजा के दो सींग "
सारंगी ने कहा "किनने कही ,किनने कही "| तबला बोला "दुमदुम हज्जाम ने,दुमदुम हज्जाम ने "|
ये शब्द सुन कर राजा गुस्से से लाल पीला होने लगा |उसने तुरंत अपने नौकर को बुलाया | नौकर को डाट कर
रामनारायण नाई को को बुलाने को कहा |नौकर तुरंत उसे बुला लाया |राम नारायण थर थर कांपने लगा |उसने
कहा "महाराज मेरा क्या कसूर है |मैने ऐसा क्या किया है जो आपने मुझे बुलबाया"|
" सच बताओ मेरे राज की बात तुमने किसे बताई थी "राजा ने बहुत गुस्से में आकार उससे पूंछा |
रामनारायण ने कहा "महाराज मैंने तो किसी से भी कुछ नहीं कहा "|राजा को उसकी बात पर विश्वास नही हुआ |
बहुत सख्ती करने पर नाई सोच कर बोला"महाराज मेरी नानी कहती थी की जब कोई बात पेट में न पचे और
पेट बहुत दुखे तब उसे किसी बेजान पेड़ से कह देना चाहिए |न तो बात फैलेगी और न ही पेट दुखेगा |मेरे पेट में
बहुत दर्द हो रहा था |इसी कारन मैंने पेड़ से यह राज कहा "|राजा ने पूंछा "यह दुमदुम हज्जाम कौन है "?
रामनारायण ने बताया की जब वह बहुत छोटा था उसकी नानी उसे दुमदुम कहा करती थी |इसीलिए उसे
दुमदुम हज्जाम के नाम से भी जाना जाता है |किसी ने सच ही कहा है."राज को राज ही रहने दो |दीवारों के भी
कान होते हें "|
आशा
वहाँ
26 फ़रवरी, 2010
होली

जब चली फागुनी बयार
मन झूम-झूम कर गाने लगा 
सुने ढोलक की थाप पर
जब रसिया और फाग 
 बार-बार गुनगुनाने लगा |
सरसों फूली टेसू फूला
वन उपवन महका 
मदमाता मौसम छाने लगा
मन झूम-झूम लहराने लगा |
अमराई में छाई बहार 
कोयल की मीठी तान सुनी 
तरह-तरह के फूल खिले 
फूलों पर भौरे गुंजन करते |
लाल, हरे और रंग सुनहरे 
गौरी की अलकों से खेले 
चूड़ी खनकी पायल बहकी 
गौरी का मुखड़ा हुआ लाल 
जब अपनों का लगा गुलाल 
प्यारा सा पाया  उपहार 
भरने लगा मन में गुमान
 तन मन   को भिगोने लगीं |
रंगों की दुकानें सजीं 
गुजिया  पपड़ी  भी  बनीं 
भंग और  ठंडाई छनी 
सब की होली खूब मनी |
आशा
24 फ़रवरी, 2010
उपेक्षिता
सजे सजाये कमरे में
मैंने उसे उदास देखा
आग्रह से यह पूछ लिया
उसका ह्रदय टटोल लिया
तुम क्यों सहमी सी रहती हो
आखिर ऐसा हुआ क्या है
जो नित्य प्रतारणा सहती हो |
पहले तो वह टाल गयी
पहले तो वह टाल गयी
फिर जब अपनापन पाया
हिचकी भर-भर कर रोई
मन जब थोड़ा शांत हुआ
अश्रु धार से मुँह धोया
तब उसने अपना मुँह खोला |
सजी धजी इक गुड़िया सी
मैं सब के हाथों में घूम रही
सब चुपचाप सहा मैने
अपने भाव न जता पाई
पर उपेक्षा सह न सकी
बहुत खीज मन में आई
मेरी अपेक्षा मरने लगी
दुःख के कगार तक ले आई |
व्यथा कथा उसकी सुन कर
मन में टीस उभर आई
मैं उसको कुछ न सुझा पाई
मन ही मन आहत हो कर
थके पाँव घर को आई |
ऐसा क्या था जो भेद गया
मैं सब के हाथों में घूम रही
सब चुपचाप सहा मैने
अपने भाव न जता पाई
पर उपेक्षा सह न सकी
बहुत खीज मन में आई
मेरी अपेक्षा मरने लगी
दुःख के कगार तक ले आई |
व्यथा कथा उसकी सुन कर
मन में टीस उभर आई
मैं उसको कुछ न सुझा पाई
मन ही मन आहत हो कर
थके पाँव घर को आई |
ऐसा क्या था जो भेद गया
दिल दौलत दुनिया से मुझको
बहत दूर खींच लाया मुझको
मन ही मन कुरेद गया |
उसमें मैंने खुद को देखा
जीवन के पन्ने खुलने लगे
बीता कल मुझको चुभने लगा
मकड़ी का जाला बुनने लगा
फँस कर मैं उस मकड़ जाल में
अपने को भी न सम्हाल सकी
जो बात कहीं थी अन्तरमें
होंठों तक आ कर रुकने लगी |
मैं भी तो उसके जैसी ही  हूँ
कभी   गलत और कभी सही
अनेक वर्जनाएं सहती हूँ
फिर किस हक से मैंने
उसका मन छूना  चाहा
मन ही मन दुखी हुई अब मैं
क्यूँ मैने छेड़ दिया उसको
उसकी पीड़ा  तो  की न कम मैंने
अपनी पीड़ा बढ़ा बैठी |
आशा
23 फ़रवरी, 2010
बच्चा एक मजदूर का
पार्क के उस कोने में
रेत के उस ढेर पर,
खेलता बच्चा बड़ा प्यारा लगता है ,
डर क्या है वह नहीं जानता ,
खतरा कैसा है वह नहीं पहचानता ,
वह तो बस इतना जाने ,
हँसना रोना या भूख प्यास .
माँ और बापू उसके ,
सड़क पर करते हैं काम ,
उनके जीवन में नहीं कोई विश्राम ,
बड़ी बहन उसकी चंचल ,
करती है देख रेख उसकी ,
उसे छोड़ देती है अक्सर ,
उसी रेत की ढेरी पर ,
रेती का ढेर फिसलपट्टी बनता अक्सर ,
इसके साथ रिश्ता उसका
नहीं कुछ अनजाना है ,
कभी ऊपर तो कभी नीचे ,
आगे कभी तो कभी पीछे ,
वह हिलता डुलता और खिसकता है ,
मुठ्ठी भर-भर रेत उठा ,
अपने मुँह पर ही मलता है ,
ठंडी रात के पहलू में ,
भाई बहनों को अलग हटा ,
माँ से लिपट कर सोता है ,
सोते-सोते हँसता है ,
या कभी ज़ोर से रोता है ,
माँ थपकी दे उसे सुलाती है ,
गोदी में उसे झुलाती है ,
रात ठंडी उसकी सहेली है ,
ऐसी कई रातें उसने ,
यहीं रह कर तो झेली हैं |
न ठंडक उसे सताती है ,
नज़ाकत पास नहीं आती है ,
पहने आधे अधूरे कपड़े ,
पर टोपा अवश्य लगाता है ,
जैसे ही होता है प्रभात ,
वही रेत का ढेर उसे ,
अपनी ओर खींच लाता है ,
वह हँसता और लुभाता है |
आशा
रेत के उस ढेर पर,
खेलता बच्चा बड़ा प्यारा लगता है ,
डर क्या है वह नहीं जानता ,
खतरा कैसा है वह नहीं पहचानता ,
वह तो बस इतना जाने ,
हँसना रोना या भूख प्यास .
माँ और बापू उसके ,
सड़क पर करते हैं काम ,
उनके जीवन में नहीं कोई विश्राम ,
बड़ी बहन उसकी चंचल ,
करती है देख रेख उसकी ,
उसे छोड़ देती है अक्सर ,
उसी रेत की ढेरी पर ,
रेती का ढेर फिसलपट्टी बनता अक्सर ,
इसके साथ रिश्ता उसका
नहीं कुछ अनजाना है ,
कभी ऊपर तो कभी नीचे ,
आगे कभी तो कभी पीछे ,
वह हिलता डुलता और खिसकता है ,
मुठ्ठी भर-भर रेत उठा ,
अपने मुँह पर ही मलता है ,
ठंडी रात के पहलू में ,
भाई बहनों को अलग हटा ,
माँ से लिपट कर सोता है ,
सोते-सोते हँसता है ,
या कभी ज़ोर से रोता है ,
माँ थपकी दे उसे सुलाती है ,
गोदी में उसे झुलाती है ,
रात ठंडी उसकी सहेली है ,
ऐसी कई रातें उसने ,
यहीं रह कर तो झेली हैं |
न ठंडक उसे सताती है ,
नज़ाकत पास नहीं आती है ,
पहने आधे अधूरे कपड़े ,
पर टोपा अवश्य लगाता है ,
जैसे ही होता है प्रभात ,
वही रेत का ढेर उसे ,
अपनी ओर खींच लाता है ,
वह हँसता और लुभाता है |
आशा
19 फ़रवरी, 2010
अनुभूति
तुम्हारे मेरे बीच कुछ तो ऐसा है
जो हम एक डोर से बँधे हैं
क्या है वह कभी सोचा है ?
अहसास स्नेह का ममता का
या अटूट विश्वास
जिससे हम बँधे हैं |
साँसों की गिनती यदि करना चाहें 
जीवन हर पल क्षय होता है 
पर फिर भी अटूट विश्वास 
लाता करीब हम दोनों को 
हर पल यह भाव उभरता है 
अहसास स्नेह का पलता है 
पर बढ़ता स्नेह
अटूट विश्वास पर ही तो पलता है |
कभी  सफलता हाथ आई 
कभी निराशा रंग लाई 
जीवन के उतार चढ़ावों को 
हर रोज सहन किया हमने 
इस पर भी यह अहसास उभरता है 
जीवन जीने का अंदाज यही होता है |
तुम्हारे मेरे बीच कोई तो ऐसा है 
जो हमें बहुत गहराई से
अपने में सहेजता है 
और इस बंधन को 
कुछ अधिक प्रगाढ़ बनाता है |
कई राज खुले अनजाने में 
मन चाही बातों तक  आने में 
फिर भी न कोई अपघात हुआ 
और अधिक अपनेपन का 
अहसास पास खींच लाया |
बीते दिन पीछे छूट गए 
नये आयाम चुने हमने 
अलग विचार भिन्न आदतें 
व  रहने का अंदाज जुदा 
फिर भी हम एक डोर से बँधे हैं 
सफल जीवन की इक मिसाल बने हैं
और अधिक  विश्वास से भरे हैं 
यदि होता आकलन जीवन का 
हम परवान चढ़े हैं 
तुम में कुछ तो ऐसा है 
जो हम एक डोर से बँधे है |
आशा
17 फ़रवरी, 2010
केमिस्ट्री जीवन की
केमिस्ट्री जीवन की नहीं आसान 
बहुत मुश्किल है
कैसे रखूँ इसे याद बहुत मुश्किल है
ताल मेल का कठिन समीकरण
बार-बार हल करना चाहा
नहीं हुआ आसान
करना संतुलित समीकरण को
बहुत मुश्किल है
फिर दोष मढ़ा किसी गलती पर
इस या उस का कन्फ्यूजन
या जीवन का सम्मोहन
बनने वाले की संरचना
या उसका संवर्धन
शायद कुछ बन भी गया कभी
उसका उपयोग किया न किया
एक फार्मूला रट भी लिया
फिर अगले को याद किया
कई-कई बार टटोला मन को
पर मन ने सभी को नकार दिया
बहुत मुश्किल है
केमिस्ट्री जीवन की बहुत कठिन
उस पर कैसे अभिमान करूँ
नहीं समझ आता मुझको
कैसे उसे आसान करूँ
सबसे कठिन फलसफा जीवन का
केमिस्ट्री का विषय निकला
कैसे करूँ इसे याद बहुत मुश्किल है
सबसे पहले पढ़ना था इसे
कोई समस्या हल न हुई
और केमिस्ट्री जीवन की
असंतुलित समीकरण बनी रही |
आशा
बहुत मुश्किल है
कैसे रखूँ इसे याद बहुत मुश्किल है
ताल मेल का कठिन समीकरण
बार-बार हल करना चाहा
नहीं हुआ आसान
करना संतुलित समीकरण को
बहुत मुश्किल है
फिर दोष मढ़ा किसी गलती पर
इस या उस का कन्फ्यूजन
या जीवन का सम्मोहन
बनने वाले की संरचना
या उसका संवर्धन
शायद कुछ बन भी गया कभी
उसका उपयोग किया न किया
एक फार्मूला रट भी लिया
फिर अगले को याद किया
कई-कई बार टटोला मन को
पर मन ने सभी को नकार दिया
बहुत मुश्किल है
केमिस्ट्री जीवन की बहुत कठिन
उस पर कैसे अभिमान करूँ
नहीं समझ आता मुझको
कैसे उसे आसान करूँ
सबसे कठिन फलसफा जीवन का
केमिस्ट्री का विषय निकला
कैसे करूँ इसे याद बहुत मुश्किल है
सबसे पहले पढ़ना था इसे
कोई समस्या हल न हुई
और केमिस्ट्री जीवन की
असंतुलित समीकरण बनी रही |
आशा
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