कुछ शब्दों  को 
स्वर नहीं मिलते 
यदि भूले से मिल भी गए
 कहीं पनाह नहीं पाते  |
वे   होते मुखर एकांत पा 
पर  होने लगते गुम 
समक्ष सबके |
ऐसे  शब्दों का  लाभ क्या 
हैं  दूर जो वास्तविक  धरा से 
हर पल घुमड़ते मन  के अंदर 
पर  साथ नहीं देते समय  पर |
स्वप्नों  में होते साकार 
पर  अभिव्यक्ति से कतराते 
शब्द  तो वही होते 
पर  रंग बदलते रहते 
वे  जिस रंग में रम जाते 
वहीँ  ठिठक कर रह जाते 
स्वर कहीं गुम हो जाते |
आशा  






