वह देखती अनवरत 
 दूर उस पहाड़ी को 
जो  ख्वाव गाह रही उसकी 
आज  है वीरान 
कोहरे  की चादर में लिपटी  
किसी  उदास विरहनी सी 
वहाँ  खेलता बचपन 
स्वप्नों  में डूबा यौवन
सजता  रूप
किसी के इन्तजार में 
है  अजीब सी रिक्तता 
वहाँ  के कण कण में 
गहरी  उदासी छाई है 
उन  लोगों में 
भय  दहशतगर्दों का 
विचलित  कर जाता 
वे  चौंक चौक जाते 
आताताई हमलों से 
कई बार धोखा खाया 
पर  प्रेम बांटना ना भूले 
जो भी  द्वारे आए 
उसे  ही प्रभु जान लेते 
पहाड़  उसे बुला रहे 
याद  वहां की आते ही
वह  खिचती जा रही 
बंधी प्रीत की डोर  में |
आशा  






