दिया गुलाब का फूल 
किया इज़हार प्यार का 
डायरी में रखा 
बहुत दिन तक सहेजा 
एक दिन डायरी हाथ लगी 
नजर उस पर पड़ी
फूल तो सूख गया  
पर सुगंध अपनी छोड़ गया 
अहसास उन भावनाओं का 
उसे भूलने नहीं देता 
याद जब भी आ जाती 
भीनी सी उस खुशबू में 
जाने कब खो जाती है 
उन यादों के खजाने से 
मन को धनी कर जाती है 
फिजा़ओं में घुली 
यादों की सुगंध 
उसको छू जो आई 
आज भी हवा में घुली 
धीरे धीरे धीमें से 
उस तक आ ही जाती है 
कागज़ कोरा अधूरा 
रहा भी तो क्या 
सुगंध अभी तक बाकी है 
उसी में रच बस गयी है 
दिल में जगह काफी़ है |
आशा 






