पीले लाल रंगबिरंगे 
पुष्प सजे वृक्षों पर 
रंग वासंती छाया 
धरती की  चूनर पर |
धरा सुन्दरी सजती सवरती 
नित नवल श्रृंगार करती
राह प्रियतम की देखती 
इस प्यारी  सी ऋतु में |
सारे  पर्ण  किलोल करते 
मदमस्त मलय से चुहल कर 
करते अटखेलियाँ पुष्पों से 
वासंती रंग में रंग जाते |
चंचल चपल विहग
आसमान में उड़ उड़ कर
आसमान में उड़ उड़ कर
अपनी प्रसन्नता जाहिर करते
नव किश्लय करते स्वागत तब 
इस अभिनव ऋतु का |
दृश्य वहीं ठहर जाता 
मन की आँखों में छिप जाता 
माँ सरस्वती का ध्यान कर 
स्वागत वसंत का होता |
आशा 





















