15 जून, 2015
14 जून, 2015
है कितना अंतर
                                                                                           है कितना अंतर  
कल और आज के सोच में 
गहरी खाई हो गई है 
विचारों में |
आज भी  याद आते है वे लम्हें 
जब होते थे बाबा  दादी के साथ 
नाना नानी मामा मामी से 
कितना प्यार मिलता था 
बता नहीं पाते शब्दों में |
अच्छा लगता था उनकी सेवा करना 
कहानी सुनना 
नई नई फरमाइश करना |
वह अपनापन वह ममता अब कहाँ 
संवेदना के अभाव में 
बोझ नजर आते हैं 
घर  भी यदि  आते
हैं |
अपने आगे और कोई कुछ नहीं 
बिना मतलब सम्बन्ध नहीं 
सारी अक्ल समाई है 
आज की सोच में |
वह सम्मान वृद्धों को मिले
कल्पनातीत लगता है आज 
 जिसकी अपेक्षा होती है 
उन्हें  इस उम्र में |
 मान
सम्मान तो दूर रहा 
घर के एक कौने में भी  जगह नहीं
वृद्धाश्रम खोजे जाते बोझ टालने को  
अब भार हो कर रह गए है |
भौतिकता वादी इस युग में
रिश्तों की गरिमा खो गई है
अपने सुख दुःख जानते हैं
वृद्धों के कष्ट भूल गए हैं |
भौतिकता वादी इस युग में
रिश्तों की गरिमा खो गई है
अपने सुख दुःख जानते हैं
वृद्धों के कष्ट भूल गए हैं |
आशा 
13 जून, 2015
बहुत याद आती है
मान मेरी बात 
मुझे तू सबसे प्यारी
माँ बहिन बेटी से ज्यादा
मित्र मुझे अपनी लगती
जब भी याद आये
तू दौड़ी चली आती है
है सच्चे मित्र की मिसाल
तेरी बहुत याद आती है
तेरी मेरी दूरी
मुझसे सहन नहीं होती
किससे मन की बात करूं
मुझे तू बहुत याद आती है |
आशा
मुझे तू सबसे प्यारी
माँ बहिन बेटी से ज्यादा
मित्र मुझे अपनी लगती
जब भी याद आये
तू दौड़ी चली आती है
है सच्चे मित्र की मिसाल
तेरी बहुत याद आती है
तेरी मेरी दूरी
मुझसे सहन नहीं होती
किससे मन की बात करूं
मुझे तू बहुत याद आती है |
आशा
12 जून, 2015
गागर में सागर
मनोभाव हैं
गागर में सागर
मनमोहक |
ताका :-है जलनिधि
गहन व गंभीर
संचय करे
अमूल्य रत्नों का ही
फेंकता अपशिष्ट |
जनम मृत्यु
ना हाथ में किसी के
प्रभु की लीला |
माया ठगनी
भ्रमित कर रही
प्रभु की लीला |
धरा उत्फुल्ल
नव पल्लव धारी
मंहा प्रसन्न |
आया वसंत
छा गई है बहार
छटती धुंध |
ताका :-है जिन्दगी क्या
टहनी फूलों भरी
पुष्प खिलते
वह झुकती जाती
होती जिन्दगी वही |
आशा
11 जून, 2015
इतने दिन तक कहाँ रही
 
इतने दिन तक कहाँ रहीं 
याद न किया मुझे 
दौड़ कर आ जा तुझे
 अपनी बाहों में झुलाऊँ|
अपनी पलकों में छिपालूं 
तेरे सारे गम चुन लूं 
तुझे खरोंच न आने दूं 
सारी विपदा खुद वर लूं  |
है मेरी अमूल्य निधि 
बड़े जतन से तुझे सहेजूँ 
तेरी एक मुस्कान देख 
मन में  स्वप्न सजाऊँ|
आ मेरी गोदी में आ जा 
आँचल में तुझे छिपाऊँ
 किसी की नजर न लगे 
डिठोना तुझे लगाऊँ |
है मन मोहिनी छबि तेरी 
मैं तेरी बलाएं ले लूं 
तुझे देख हर पल जी लूं 
सब धन मैं पा जाऊं |
आशा 
10 जून, 2015
तारों की दुनिया में
शाम का धुंधलका 
रात्रि की प्रतीक्षा 
मुझे ले चली 
खुले मैदान में |
रात्रि में सितारे 
झिलमिलाए टिमटिमाये 
यहाँ से वहां जाएं 
ले चले अपने साथ में |
विचारों ने उड़ान भरी 
माँ ने एक बार बताया था 
हर तारा किसी न किसी का
घर होता है  |
मैंने सोचा क्यूं न मैं 
अपना घर खोजूं 
उस जहां में 
सितारों के सान्निध्य में |
जैसे ही कदम बढाए 
दृश्य विहंगम  नजर आया 
एक समूह   तारों का 
दरिया सा नजर आया |
याद आई आकाश गंगा 
किताब में कभी पढ़ा था 
 समेटे है अनगिनत तारे
अपने में |
अपने में |
ज़रा भी भ्रम नहीं हुआ देख कर 
यही है शुक्र तारा प्यार का सितारा 
किसी ने नाम दिया  भोर का तारा
चमक तीव्र इसकी पहचान हुई |
पर एक तारा नन्हां सा 
चाँद के पास 
इतना मन भाया सोचा 
कल यही मेरा घर होगा |
कल यही मेरा घर होगा |
आशा  
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