खिड़की खुली थी किया प्रवेश वहीं से 
द्वार खुला था उधर से  न आये 
क्या बिल्ली से सीख ली थी 
या नक़ल उसकी की थी |
छलांग लगा छींका गिराया 
मटकी फोड़ दही गिराया 
कुछ खाया कुछ बिखराया 
पकडे गए तब रोना आया |
अकारण शोर मचाया 
सब को धमकाया
सब को धमकाया
चलो आज  माँ के पास
न्याय मैं करवा कर रहूंगी 
प्रति दिन यह शरारत न सहूंगी |
वह भोली नहीं जानती
है व्यर्थ शिकायत
है व्यर्थ शिकायत
माँ कान्हां को नहीं मारती 
डंडी से यूं ही धमकाती 
फिर ममता से आँचल में  छिपाती |
 है
कान्हां भी कम नहीं 
कहता माँ यह है झूठी 
इसकी बातें नहीं सुनो 
तुम मेरा विश्वास करो | 
अब वह जान गई है  
कोई प्रभाव न होना नटखट पर 
बालक है भोला भाला
मनमोहक अदाओं वाला |
यही है बाल लीला कान्हां की 
मृदु मुस्कान मुख पर उसकी 
सारा क्रोध बहा ले जाती
,वह जमुना जल सी हो जाती |
आशा