20 फ़रवरी, 2016

मुक्तक


नाचता मोर के लिए चित्र परिणाम
दीवानगी इस हद तक बढी
भूल गई वह कहाँ चली
यदि किसी अपने ने देखा
सोचेगा क्यूँ यहाँ खड़ी  |
 |
मन मोर थिरकने लगता
मंथर गति से नाचता
पा कर अपनी संगिनी
अपना सब कुछ वारता |


ना पाल मोह इस देह से
ना मद से ना ही मत्सर से
 परमात्मा से नेह लगा
भर जाएगा सुकून से   |
आशा


18 फ़रवरी, 2016

सुरभि

एक दिन घूमते समय रास्ते में सुरभि मिल गई थक गए थे सोचा क्यूँ न पुलिया पर बैठें और पुरानी बातों का आनन्द लें |गपशप में कहाँ समय निकल गया पता ही नहीं चला |अब यह आदत सी हो गई रोज घर से और पुलिया पर बैठ बातें करते |
    एक दिन वह बहुत उदास थी | जब कारण पूंछा अचानक रोने लगी जब शांत हुई तो उसने बताया "एक समय था जब उसके श्रीमान जी मिल में इंजीनियर थे बड़े ठाट थे |मिल बंद होते ही बेरोजगारी के आलम में कुछ दिन तो ठीक ठाक गुजरे पर गिरह की पूंजी कब तक चलती सोचा अपने बड़े बेटे के पास जा कर रहें "
दोचार दिन तो बहुत खातिर हुई पर धीरे धीरे काम को लेकर अशांति होने लगी कल यही हुआ जब सुबह पेपर पढ़ रहे थे "विनीता कह रही थी आखिर बाबूजी को काम ही क्या है क्या वे बच्चों को स्कूल तक लेजा ला नहीं सकते इतना तो कर ही सकते हैं दिन भर पड़े रहते हैं और मुफ्त में रोटियाँ तोड़ते हैं "|
   बेटा बोला धीरे धीरे सब ठीक हो जाएगा अभी से अशांति क्यूं ?कोई सुनेगा तो क्या कहेगा |
         सुरभि बता रही थी "मैं तो प्रारम्भ से ही काम करती रहती थी पर इंजीनियर साहव ने तो कभी एक ग्लास भर कर भी न पिया था "उसका  रोने का कारण था शान से बिताया गया बीता हुआ कल यदि पहले से ही आगे की सोचते तोआज यह स्थिति नहीं आती पर नियति के आगे कुछ भी नहीं हो सकता

तभी तो कहा जाता है जो आगे की सोच कर चलता है और कठोर धरती को नहीं छोड़ता है वही सरल जीवन जी पाता है |
 सदा भविष्य को ध्यान में रख कर आने वाले कल के लिए प्लानिग करना चाहिए और बचत करने की आदत डालना चाहिए |
      मुझे आज भी उस घटना का स्मरण होआता है और मेरे आगे आ जाती है सुरभि की सूरत जिसे भुला नहीं पाती |
आशा











16 फ़रवरी, 2016

बातें दो बच्चों की





एक दिन की बात है दो बच्चे बंद धर के दरवाजे पर बैठे थे |अनुज बहुत खुश था क्यूं की उसका जन्म दिन था वह सोच रहा था कब मां आये और उसके लिए जन्म दिन का तोफा लाए |
   उसने अपने मित्र रवि से पूँछा”तू मेरी साल गिरह पर आएगा ना  आज शाम को “रवि ने कहा यार मैं तो आ जाता पर मेरे पास गिफ्ट तो है ही नहीं तुझे क्या दूंगा |वैसे भी महीने का अंत  होने को है |मेरी मम्मी 



  के पास पैसे भी तो न होंगे “खाली हाथ आना तो ठीक न लगेगा “|
अनुज ने सलाह दी “ अरे गिफ्ट की  क्या बात करता है वह मेरे  पास जो डायरी है उसी को कागज़ में लपेट कर दे देना पर उसमें तो कुछ लिखा भी है “रवि उदास स्वर में बोला | अरे उन पन्नों को फाड़ देना ||गिफ्ट तो
      “ अरे उन पन्नों को फाड़ देना और दे देना “  गिफ्ट ही होता है तू आना  जरूर “|वे दौनों इतनी गंभीरता से कर रहे थे कि उनकी बातों को मैं आज तक ना भुला पाई |


15 फ़रवरी, 2016

परिवर्तन मौसम का

बदला मौसम का अंदाज 
बिछा हरा मखमली जाल 
बंजर भूमि पर हरियाली 
पुष्पित हुई डाली डाली 
झूमती खेतों में बाली बाली 
है अद्भुद एहसास
अन्तरिक्ष में उगा पीला फूल
 लगा विज्ञान का चमत्कार 
बेमौसम लदे वृक्ष पुष्पों से 
फूले कनेर पीले पीले 
होने लगी बेचैनी 
गटेर के पाँचों के लिए 
पर अचानक गिरता त्ताप्मान
बर्फवारी की मार 
किसान कैसे झेल पाता
पाले के आसार देख
 बेचारा  सदमें में आजाता
आनेवाले कल के हश्र में 
खुद को असुरक्षित पा
जीवित रहना नहीं चाहता
अनिश्चितता हर बात में 
मौसम के व्यवहार में 
अर्थ व्यवस्था कैसे सुधरे 
जब टक्कर हो 
मुसीबतों के पहाड़ से |
आशा



13 फ़रवरी, 2016

आजाद कलम

आजाद कलम
 उन्नत  विचार 
मन में लिए विश्वास 
पैर धरातल पर पड़े 
जीवन में आया निखार 
भाव मन के स्पष्ट हुए 
छलकपट से दूर हुए
स्वतंत्रता के पुरोधा 
बन्धनों से मुक्त हुए 
सत्य सत्य ही होता है 
बदल नहीं सकता
 तथ्य परख लेखन से 
फिर परहेज क्यूं ?
परिणाम चाहे जो भी हो 
अंजाम से भय क्यूं 
झूट के पांव नहीं होते 
फिर उस पर आश्रित क्यूं ?
जब सत्य उजागर होता है 
मन का कलुष धोता है 
फिर जो भी लिखा जाता है 
सदियों तक उसे 
 याद किया जाता है 
लेखन किसी दबाव  में 
जिसने भी किया 
कलम बेच डाली 
चंद सिक्कों  के लिए 
कुछ भी हाथ नहीं आया 
आत्मग्लानि केसिवाय 
अशांति के शिकंजे में 
खुद को फंसा पाया |

आशा





11 फ़रवरी, 2016

लम्बी बीमारी के बाद

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संवेदना विहीन
निष्ठुरता के पुरोधा 
क्या है सोच जानना कठिन 
अंतस की हल चल का
यदि कभी कुछ सहा होता 
कष्ट का अनुभव किया होता 
तभी अनुभव होता
कष्ट किसे कहा जाए
यदि संवेदना के दो बोल भी
भूले से निकले होते
बंजर मन के कौने में
कई कमल खिल जाते
व्यय कितना भी किया जाए
पर मृदु भाषण से दूरी हो
नौकरों की भीड़ लगी हो
 सब भार नजर आते
अपनापन कहीं गुम हो जाता
  आडम्बर सा लगता
एक शब्द विष से बुझा
गहराई तक छू जाता
तन मन से की गई सेवा
किसी पर कर्ज नहीं होती
वे लम्हे याद सदा रहते
गैरों में व अपनों में
अंतर स्पष्ट करते
लम्बी रोगों की दुकान
उबाऊ होती जाती
एक कहावत याद आती
काम सब को होता प्यारा
बिना काम  वह होता  नाकारा
पृथ्वी पर बोझ नजर आता
जीवन से मुक्ति चाहता |
आशा