खेल ही  में समय बिताया 
कभी सोचा नहीं भविष्य का  
वर्तमान में जीने के लिए 
बीते कल को याद न किया | 
केवल स्वप्नों में डूबी  रही 
वर्तमान की चमक दमक  ने
 इस
तरह मोहा मुझे 
आगे का मार्ग  भटक गई |
बहुत चाहा फिर भी  
 आगे प्रगति कर  न सकी  
कोई मददगार न मिला
 सही
मार्ग दिखाने को |
कूपमंडूक सी  सिमटी रही 
खुद के आसपास अपने आप में 
कूए से बाहर आ न सकी 
उसे ही अपनी दुनिया समझी |
आखिर दुनिया है  कैसी 
कितने रंग छाए है उसमें 
जब देखा ही नहीं 
तब क्यूँ दोष दू किसी को  |
वर्तमान करता आकर्षित 
उसमें 
ही  रहना चाहती हूँ 
श्वासों  का क्या ठिकाना 
                                                                  आगे पीछे की क्या सोचूँ ?आशा




