पञ्च तत्व से बनाया पिंजरा
द्वार बंद करना शेष रहा 
तभी जीव ने कदम रखा 
पीछे से आए माया मोह मद लोभ |
जैसे ही कदम रखे पिंजरे में 
द्वार स्वयम  ही बंद हो गया 
जीव ने कोशिश की भर पूर पहले 
वह टस से मस न हुआ 
बंद ही रहा बहुत समय तक | 
जीव ने सोचा क्या करे 
भरपूर माया का उपयोग किया 
माया में हो लिप्त गया 
मोह ने अपने भी  पैर पसारे 
दौनों का मद ऐसा चढ़ा उस पर 
वह मदांध हो गया इतना की 
वहीं फंसा रह गया बहुत समय तक |
पर जब हुआ जर जर पिंजरा 
याद आई फिर से स्वतंत्र विचरण की 
उस द्वार की जिससे 
पिंजरे में  प्रवेश किया था |
वह बेचैन हुआ आध्यात्म की ओर झुका 
हर बार ईश्वर का ध्यान करता 
फिर द्वार खोलने का प्रयत्न करता 
माया मोह से मन उचटा उसका |
एक दिन पिजरे का द्वार खुला रह गया
वह भूला उन चारों को जिन ने बांधा था उसको
उड़ चला स्वतंत्र हो अनंत में
खाली पिंजरा रह गया जो पञ्च तत्व में विलीन हुआ
 इस भव सागर में |
आशा