17 दिसंबर, 2022

दीप शिखा


 शाम  हुई महफिल सजी

दीपक जला रौशन किया

आधी रात तक कवितायेँ सुनाई सुनाईं

जैसे जैसे रात गहराई

दीपक की बाती भी जली

पर उसे चैन कहाँ

तुम बिन महफिल सूनी दिखती

दीपक की लौ कभी तेज हो जाती कभी धीमी

 दीप  शिखा उतनी ही उग्र हो बनी रहती   

दीपक तले  तो अंधकार रहता 

पर पूरा कक्ष रौशन करता

 उसे इसकी खबर तक नही होती

कब वायु वेग ने प्रहार किया बाती बुझी

जब बोलती चिड़िया भोर होने की सूचना देती

वायु के झोंके से दीपक बुझने के कगार पर होता

पर उसे यह भान न होता 

भावनाओं में डूबी रहती अपनी पूरी क्षमता से

 अचानक परिवर्तन आता

 बाती  बुझ जाती उसकी 

शिखा जलती कुछ क्षण

महफिल का समापन होता आधी रात के बाद

पर उसका मन होता उदास

 वह दीप शिखा सी उग्र होती |


आशा सक्सेना 

15 दिसंबर, 2022

तुम कब आओगे

 

                                                                                                                                                                                                                                                         औ सांता तुम कब आओगे 
हमने \वर्ष भर इंतज़ार किया तुम्हारा
पिछ्ला साल इतना जल्दी बीता  
कितनी खट्टी मीठी यादों गई पिछले साल के  साथ  
बच्चे हुए उत्सुक घर की सफाई के लिए 
दो सप्ताह बीत गए हैं 
सुन्दर स्वच्छ घर बनाने में 
अब जुटे है अपनी  ही  सजावट में
क्रिसमस ट्री  ले आए है   हॉल में सजाने को
 प्रति दिन  उठते ही  एक बात होती है 
अब और क्या रहा काम रहा है 
कोई कमीं न रह जाए तुम्हारे स्वागत में |
नित नए प्लान बनाए जाते 
सोचा जाता तुम को है पसंद क्या 
 मुझे आदेश  दिया मां क्या मिठाई बनाओगी 
हम सांता को बड़े प्यार से खिलाएंगे 
वे भेट भी तो लाएंगे 
 इंतज़ार का समय बहुत मुश्किल से कट रहा 
तुमने  क्या छिपा कर रखा है उस झोले में 
मुझे भी व्यस्त किया है उन की चाहत पूर्ण करने में 
तुम कब आओगे |

आशा लता सक्सेना  




                                                                                                                                    

11 दिसंबर, 2022

समस्या मेरी

  






कर्तव्य मेरा भूल  चली मैं

बाँध किसी से डोर प्यार की

भूली अपने सारे कर्तव्य  

किस से पूंछूं  विचार न किया |

यही कष्ट रहा आज तक

मैं अपने कर्तव्य निभा न सकी

रही अनमनी हर समय

उलझी उलझी अपने में |

जिन्दगी की पेचीद्गी

से दूर नहीं हो पाई

क्या चाहा था क्या किया

कहीं सफल न हो पाई |

रह गई अधूरी तमन्ना मन में

 देख  न सकी दुर्दशा अपनी  

जीवन लगा भार सा अब तो

क्या यही नियति थी मेरी |

किसी ने हल ना की समस्या मेरी  

जीवन में किसी का स्थान नहीं था

अब खुद ही उलझी अपने में

कैसे निभा पाऊँगी  सब से |

 यही  दुविधा है मन में 

10 दिसंबर, 2022

प्यार की चाह

 

प्यार  की चाह

यदि प्यार की एक झलक भी

उसने  देखी होती खुशियाँ छातीं

जीवन में रवानी आ जाती

किसी बात में कमीं न रह पाती |

कभी सोचा न था उसने

गिरह में झाँक कर कभी देखा न था    

यह परिवर्तन आया  कैसे

 सूखे गुलाब से भी खुशबू कहीं गुम हो गई उसमें ज़रा भी गंध न रही

कहा तो जाता है गुलाब में हैं गुण अनेक  

वे कभी भी उपयोग में लाए जा सकते |

पर देखा कुछ और जो देखा  मन में

 मलाल आया बड़ा संताप हुआ

जो जैसा दिखता है वैसा होता नहीं

यही क्या कम है कि  वह है यहीं

पर सुगंध कहीं खो गई है |

यदि वह भी होती यहाँ कितना अच्छा होता

जीवन की गति तो कम हो जाती

पर ख़तम न हो पाती |

हुआ उसे एहसास की वह बेनूर हो गई 

मन की शान्ति उसकी कहीं खो गई

बारम्बार अपनी कमियाँ खोजने लगी

  उसके  मन को शांत न रख न पाई |

व्यर्थ ही उलझने बढ़ाई 

सामान्य नहीं  हो पाई

खुद को तो नष्ट किया  

अन्य को भी दुःख पहुंचाया

 चैन से जीने नहीं दिया |

आशा सक्सेना   

वे भी रहीं सतही


  

जीवन में कितने ही सम्बन्ध गहरे नहीं होते 

 केवल मात्र दिखावा होते उनमें कोई सत्यता नहीं  

चाहत भी सतही होती जिसे देख नहीं पाते

केवल महसूस कर पाते जब समाज में रहते |

तब मन को बड़ा कष्ट होता मन विचलित होता

एकांत वास का इच्छुक होता 

जीवन में शान्ति पाना चाहता

पहले जैसा जीवन चाहता|

आशा सक्सेना 


09 दिसंबर, 2022

मित्रता तुमसे

 

कब तक परखोगे  मुझ को

मुझ सा कोई नहीं मिलेगा तुम्हें    

हूँ एक अकेला जीव ऐसा

जब तक  तुमसे नहीं जीता

 मुझे नहीं  मिली  सुख की छाया |

यह एक दिन की बात नहीं

कितने ही कदम  बढ़ाए मैंने

जब तब दो दो हाथ  किये

आकलन  जब खुद न कर पाया

संभल चाहा तुम जैसों का

 तुम भी मुझे समझ न पाए

मुझे हुआ दुःख इस बात का |

 मेरी अपेक्षा में आशा के अलावा

गलत क्या और सही क्या है

 तुम  यह तो बताओ

केवल ख्याली पुलाव न पकाओ

इससे मुझे गहरा दुःख होगा

तुम पर से भी मेरा विश्वास उठ जाएगा

 मित्र जैसा कोई न नजर आएगा |

 

 

08 दिसंबर, 2022

जब भोर हुई


 

जब भोर हुई

सारी कायनात महकी

अनोखी लगी पत्तियों फूलों की महक

पक्षियों  का मधुर स्वर

पंछियों  का प्रेम हरियाली से

जब देखी माली ने

उसकी मेहनत ने रंग दिखाया

उसको गर्व हुआ खुद पर

 कोई कमी ना छोड़ी उसने

पौधों की सेवा में |

लोगों ने उसे दिया एक तोहफा 

मिली  एक उपाधि पेड़ो के पिता की

सब आते सुबह और शाम घूमने

 जब  मन से तारीफें करते माली की

दिल उसका बाग़ बाग़ होता

वह भूला अपनी मेहनत  अपार प्रसन्न हुआ

उसे जो खुशी  मिली बाँट रहा सब से |

सूर्य किरणें खेल रहीं पास के जल  में

खेल रहीं नवल  फूलों  से  |

आशा