सोनाक्षी चंचल मना ,पाया रूप अनूप |
कानन वन में खोजती ,वर
अपने अनुरूप ||
आलते से पैर सजे
,पायल की झंकार |
रख पाते न सुध अपनी ,पा
कर अपना प्यार ||
मृगनयनी मृदुबयनी ,जब
करती मनुहार |
स्वर्णिम आभा फैलती,ऐसा
है यह प्यार ||
पुष्प भरी डाली
झुकती ,जाने कितनी बार |
मुखडा छूना चाहती
,करने को अभिसार ||
यहाँ वहाँ वह घूमती ,खुद को जाती भूल |
दामन खुशियों से भरा
,वर पा कर अनुकूल ||