जीवन की पुस्तक मेंआज
एक पन्ना और जुड़ा है
कभी सोचा न था
यह क्या हुआ है |
हर बार की तरह
इस बार भी उसे
अपठनीय करार दिया
गया|
मन में विद्रोह उपजा
ऐसा क्यूँ हुआ ?
किस कारण से हुआ?
पर अभी तक प्रश्न अनुत्तरित
हैं
इनके उत्तर ढूँढूं कहाँ
जिससे भी जानना चाहा
उसी ने कहा यह तो
जीवन में आने वाली सामान्य
सी
सहज ही सी
प्रतिक्रिया है |
कोई कारण नहीं
यूँही चिंता करने
में
मन में व्यर्थ का
भय पालने में |
जीवन कभी सहज न हो पाएगा
ऐसे ही दबा रहेगा यदि
प्रश्नों के बोझ तले
जीना दूभर हो जाएगा |
आशा