16 मई, 2023

जिन्दगी एकतारे जैसी




 मेरी  जिन्दगी एक तारबाध्य सी 

 जब तक बजता एकतारा   बहुत मधुर लगता है

पर जैसे ही तार टूट जाता है

जीवन  भी धोका देता है |

जिस पर नाज सारी दुनिया करती

 यदि रास्ता बदले सड़क टूटी हो

आगे बढ़ नहीं पाते

यही से कठिनाई शुरू हो जाती है |

जितना रास्ता पार करना होता

वही पूर्ण नहीं हो पाता

 तमाम चोटें पैर सहते मन भी आहत होता

खुशी तिरोहित हो जाती है |

जीवन में जब तार जुड़ जाते

तार स्वर में लाए जाते

यही सिलसिला फिर से प्रारम्भ होने लगता

स्वर से स्वर मिलते मधुर धुन सुनाई देती

मन की अशांती फिर गुम हो जाती |

वही मधुर धुन जब कानों में पड़ती

जीवन खुशरंग हो जाता |

आशा सक्सेना

 

15 मई, 2023

कविता के रूप अनूप


 कविता के रूप अनूप मुझे बहुत लुभाते 
सुनते ही मन में खुशी बढाते 

जब तक पूरी ना  हो कोई सुन नहीं पाता

जब तक नया रूप ना हो आनंद नहीं आता 

कोई  सुनना नहीं चाहता |

कहने को तो कुछ नहीं कविता लिखने में 

सतही अर्थ समझने में 

पर गूढ़ अर्थ समझना आसान नहीं होता 

जिसके अनुभव होते गहन

 वे पूरी तरह उसे  आत्म सात करते 

पूर्ण आनंद  लेते यही विशेषता होती जब 

लिखना सार्थक हो जाता

श्रोता वक्ता जब एक दूसरे को समझ पाते 

कवि सम्मेलन का आनन्द ही कुछ और होता  |

आशा सक्सेना 

14 मई, 2023

जीवन की शाम

 

अथाह सागर है,किनारा दिखाई नहीं देता 

बड़ी बड़ी लहरे किनारे पर

जो भी  साथ बहता , बहता ही जाता

समुद्र के बीच तक , किनारा ना खोज पाता

आखिर वह  घड़ी भी आती

जब भव सागर में वह डूब जाती 

सब का अंत होने का यही है तरीका

शरीर छूटते ही सभी समाप्त हो जाता |

माया मोह नहीं रहता,सभी यहीं रह जाता

इसी दुनिया में खाली हाथ आए थे

अब खाली हाथ चल दिए ,कुछ साथ नहीं जाता

हमारे कर्मों को ही ,याद किया जाता  |

यदि कर्म कुछ अच्छे रहे ,जीवन समाप्ति के बाद भी

समय समय पर ,याद किया जाएगा उन्हें

 बरसों तक खाली स्थान ,भर ना  पाएगा

यही बात है असाधारण ,दुनिया यूँ ही  चलती है |

आशा सक्सेना  


13 मई, 2023

मन चाहे कितनी भी मनमानी करे






                                                                    मन चाहे कितनी भी

 मनमानी करे 

जीते हारे अपने विचारों में 

यह कोई अच्छी बात नहीं |

समाज में रहने से 

उसके अनुकूल चलने से 

कुछ तो सीखने को मिलता है |

कोई फैक  नहीं देता 

अपने विचारों को कुछ तो

समाज  मान्यता देता है 

धीरे धीरे प्रगति की और 

अपने आप  कदम  

बढ़ने लगते हैं

 यही क्या कम है|

आशा सक्सेना 

12 मई, 2023

किसी को मत तोलो एक ही तराजू से


 किसी को मत तोलो  एक ही तराजू ने 

सब का स्वभाव कभी एक सा नहीं होता 

कभी दो लोग सामान नहीं होते

 इस लिए भी उनके आचार विचार होतेहैं भिन्न |

उनको कितना भी तराशा जाए

 कभी पूर्ण  हो ही नही पाते 

जो चाहिए वे गुण उसके व्यक्तित्व में

 आ ही नहीं सकते  जिससे की जा सके कोई उम्मीद 

|मन को बहुत पीड़ा होती है उसके व्यबहार  से 

क्या सोचा था और क्या पाया 

अब जान लिया है इसी लिए 

अपने विचार को नियंत्रण  में रखा है |

आशा सक्सेन

09 मई, 2023

है कितनी समानता दौनों में


 है कितनी समानता दोनों में 

 कभी सोच कर देखना 

उसमें तुममे है यह भी विचार करना 

तभी दौनों में इतनी पटती है |

उसे आडम्बर रास नहीं आता 

मन में दिखावा चोट पहुंचाता 

तुम भी उससे कम  नहीं हो  

छोटी बातों पर बुरा मानते हो  |

तुम भी ऐसा ही व्यबहार करते हो 

जैसा अपना सम्बब्ध होगा 

वैसा ही व्यवहार दूसरे से होगा |

 हालाकि मन तो दुखेगा|पर क्या करें 

|ईश्वर ने नजाने क्या सोच कर 

दौनों की जोड़ी बनाई है 

तब भी जब दौनों में तकरार होती है  |

सुलह के लिए बड़ों की जरूरत होती है 

यही बात मुझे बेचैन करती है 

मेरे मन का संतुलन डगमगाती है 

मुझे किसी बात का कष्ट होता है 

यह भी किसी से बाट नहीं सकती 

मैं क्या करूं किससे कहूँ |

आशा सक्सेना 


08 मई, 2023

आवश्यकता आत्म निर्भरता की

 ना किसी से कुछ चाहा 

यदि किसी से प्राप्त हुआ भी

 मन से ना  स्वीकारा 

मन में रहा गुप्त हो कर |

 किसी से सहायता की 

है क्या आवश्यकता 

यही सिखाया बच्चों को 

किसी की दया के पात्र ना बनो 

अपना आत्म बल तोलो

 उसी का उपयोग करो |

मेरा मन कहता  है 

तुम कभी ना  हारोगे 

यही टिप तुम्हारे काम आएगे 

तुम्हारा जीवन सवारेगे |

आशा सक्सेना