17 जून, 2023

धोखा प्रकृति का


 


समय चक्र  ने धोखा  दिया

मौसम ने साथ ना दिया, फसलें बिगड़ी  

आंधी तूफान ने भी झटका दिया

दी आर्थिक हानि बिना जाने |

क्या सभी अमीर होते हैं

जाने कितनी कठिनाई सह कर

 अपने सपनों का बनाते हैं घर  

कई  वृक्ष  तूफान में धराशाही हुए

लहरों के संग बह गए |

जब जागे अखवार पढ़ा

 पहला ही भरा पड़ा था पेज

ऐसे ही समाचार से मन को झटका लगा

चाय पीने का भी मन ना हुआ |

गहरे  भाव मन में उठे चोट गहरी मन को लगी

अखबार के पेज दूसरे पर हिन्सा की दूकान लगी 

घरेलू हिंसा भी कम ना  लिखी

आम जन आर्थिक तंगी से भी हुआ बेचैन  

मन को चोट लगी यह सब देख |

आशा सक्सेना   

    

 

16 जून, 2023

उसने गलती की है

 किसी से प्यार करो न करो 

पर उसको नहीं भूलो 

उसने क्या गलत किया है 

है आज की परवरिश उसकी  |

उसने संस्कृति को जाना नहीं है 

अपने परिवार को पहचाना नहीं है 

 दुनिया की परछाईं पड़ी उसपर 

वह खो गया आज के माहोल में |

मैंने जब भी टोका उसको 

उसने एकना सुनी मेरी 

मनमानी की हरपल उसने 

 उसकी मासूमियत पर

बड़ा प्यार आता है 

यही भूल हुई मुझसे 

उसने गलत किया है 

मैं समझाऊंगी उसे \


आशा सक्सेना 

14 जून, 2023

मेरी अभिलाषा

 

रंगरेजवा मेरी रंग दे चुनरिया

रंग चाहे जो भी दे मन प्रफुल्लित हो जाए

मैंने कभी कोई रंग ही ना  देखे

जो नयनों को सुन्दर लगे मन को भाए |

मुझे आवश्यकता है चटक रंग की चूनर की

आर तेरी भी सहमती चाहिए

जब पहनकर निकालूँ राह में

लोग तरसें देखने को मुझे |

मुझे खुद पर हो गर्व जब किसी से तुलना हो

मैं निकलूँ  रंगीन चूनर पहन जब

कोई उसकी कीमत पूछें बत्त्ने में जो ख़ुशी मिले

आम जन को ना हांसिल हो |

मेरी अभिलाषा है मुझसा कोई न हो 

जब निकालूँ सब देखते ही रह जाएं मुझे 

मैंने इसी सफलता पर 

सब के मुंह से निकले वाह क्या बात है |

आशा 


कविता ने अपना गम भूला

 

मेरी  कविता ने अपना गम भूला

कुछ नया लिखने का मन हुआ

जब कलम उठाई उत्साह जाग्रत हुआ 

यही समझ आया कभी तो सफलता मिलेगी|

अपने जीवन की रंगीनी उसमें डाली

यही किया अपने को व्यस्त करने के लिए

सब ने हतोत्साहित भी किया पर मैंने हार नहीं मानी

 जिसने भी सलाह दी उस पर पूर्ण विचार किया

नवीन शब्दों  का अर्थ खोजा

जो शब्द  हनी से भी मीठा हो उसका ही उपयोग किया

मन लुभावन  होने से  आराम से उपयोग किया 

यही चाह थी  मन में पूरी सफलता पाई |

आशा सक्सेना

 

 

 

सालगिरह



शाम हुई घर में चहलपहल हुई

आने वालों का ताता लगा

आज है सालगिरह मेरे बेटे की

केक लाए मिष्ठान लाए

सभी को सजाया टेबल पर |

तरह तरह के मुखोटे बनाए सब के लिए

सभी को पहनाए तरह तरह से सजाए

अनोखा रूप दिया सब को बच्चे खुश हुए

अपने रूप देख ,अब हुई उत्सुकता केक काटने की|

 सब्र नहीं  हुआ कब केक काटा जाए सोचा

मिष्ठान का सेवन कब हो

और कब गाने गाए जाएं जन्म दिन के

डीजे पर थिरकने का उसका मन है नाचने का |

उसने गीत भी तैयार किया था नया सा

सब को बहुत प्यारा लगा सुन कर सुनकर

उसको उपहार दिया मिलजुलकर सबने

गीत को भी सुनकर ओर उत्साहित किया |

कितने खुश थे बच्चे यह आयोजन देख

बार बार ठुमकने लगते सब के सब

अब चलने की बारी आई उदासी मुह पर छाई

धीरे धीरे जमावड़ा कम हुआ |

अब ढोलक की बारी  आई

गीत हुए महिलाओं के मन में सोचे गीत गाए

हवामें उड़ जाने का बहाना लिया

हुआ समापन सालगिरह का |

आशा सक्सेना

12 जून, 2023

तुम उसके वह तुम्हारी




तुम उसके वह तुम्हारी
 सदा उसके ही रहोगे
 उसका एक ही अरमां रहां 
 तुम से जुड़े रहने का 
 उसमें भी जब बाधा आई 
 वह सह नहीं सकी 
 उस पर विपरीत प्रभाव पडा
 मन में बगावत आयी 
 लोगों ने भांप लिया
 उसके मन में क्या है
 समझाया उपाय
 बताए अनेक upaay 
पर जब तुमने उड़े
 आश्वासन दिया 
उसको  मन को सान्त्व्ना मिली
 उसके फिर भी
 वह आशान्वित ही रही
 यही एक जिद ठानी 
 जब तुम तक पहुंची 
 अभिलाषा पूर्ण हुई 
 सबको डंके की चोट पर 
कहा है वह तुम्हारी तुम उसके हो 
 और नहीं है दौनों के बीच |
 दूसरा ना कोई हैं |


आशा सक्सेना