13 नवंबर, 2009

दिया

कण कण रौशन किया दीये ने ,
घर का तम हर लिया दीये ने
अपना जलना भूल दीये ने,
किये न्यौछावर प्राण दीये ने |

आशा

1 टिप्पणी:

  1. बहुत ही प्रेरणाप्रद कविता है । काश सभी दीये की तरह अपने जीवन को उत्सर्जित कर औरों के जीवन को आलोकित करने की क्षमता अर्जित कर सकें ! बहुत सुन्दर !

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