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05 दिसंबर, 2009
क्षणिका
इधर पत्थर उधर पत्थर ,
जिधर देखो उधर पत्थर ,
काल की अनुभूतियों ने ,
बना दिया मुझे पत्थर |
1 टिप्पणी:
साधना वैद
6 दिसंबर 2009 को 11:03 am बजे
बहुत खूब । सुन्दर मुक्तक है ।
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बहुत खूब । सुन्दर मुक्तक है ।
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