एक और आँखों देखा सच तथा उससे बुना शब्द जाल !
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जब तुम उसे इशारे करते हो ,
शायद कुछ कहना चाहते हो ,
कहीं उसकी सूरत पर तो नहीं जाते ,
वह इतनी सुंदर भी नहीं ,
जो उसे देख मुस्कुराते हो ,
उसे किस निगाह से देखते हो ,
यह तो खुद ही जानते हो ,
पर जब उसकी निगाह होती तुम पर ,
अपने बालों को झटके देते हो ,
किसी फिल्मी हीरो की तरह ,
अपना हर अंदाज बदलते हो ,
कभी रंग बिरंगे कपड़ों से ,
और तरह-तरह के चश्मों से ,
उसको आकर्षित करते हो ,
गली के मोड़ पर,
घंटों खड़े रह कर ,
बाइक का सहारा ले कर ,
कई गीत गुनगुनाते हो ,
या गुटका खाते हो ,
तुम पर सारी दुनिया हँसती है ,
तुम्हारी यह बेखुदी देख ,
मुझको भी हँसी आ जाती है |
आशा
बाइक का सहारा ले कर ,
जवाब देंहटाएंकई गीत गुनगुनाते हो ,
या गुटका खाते हो ,
तुम पर सारी दुनिया हँसती है ,
तुम्हारी यह बेखुदी देख ,
मुझको भी भी हंसी आ जाती है |
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बहुत ही बढ़िया रचना लिखी है आपने तो..!
अक्सर गली ,मोहल्ले और कालेजों में घटित होता रहता है । अच्छा चित्रण ।
जवाब देंहटाएंha ha badhiya...chitra sa saamne aa gaya...bahut sundar...
जवाब देंहटाएंक्या बात है ! आपकी लेखनी से कोई विषय अछूता कैसे रह सकता है ! हर विषय पर आपकी पकड़ मजबूत है और अभिव्यक्ति सशक्त ! रचना पढ़ कर ना जाने कितने दृश्य आँखों के आगे साकार हो गए ! बहुत खूब !
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी लगी ये रचना सब कुछ जाना पहचाना है
जवाब देंहटाएंumda rachna...
जवाब देंहटाएंबिलकुल शब्द चित्र खींच दिया है.. बहुत बढ़िया ..:):)
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