14 जून, 2010

एक मनचला

एक और आँखों देखा सच तथा उससे बुना शब्द जाल !
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जब तुम उसे इशारे करते हो ,
शायद कुछ कहना चाहते हो ,
कहीं उसकी सूरत पर तो नहीं जाते ,
वह इतनी सुंदर भी नहीं ,
जो उसे देख मुस्कुराते हो ,
उसे किस निगाह से देखते हो ,
यह तो खुद ही जानते हो ,
पर जब उसकी निगाह होती तुम पर ,
अपने बालों को झटके देते हो ,
किसी फिल्मी हीरो की तरह ,
अपना हर अंदाज बदलते हो ,
कभी रंग बिरंगे कपड़ों से ,
और तरह-तरह के चश्मों से ,
उसको आकर्षित करते हो ,
गली के मोड़ पर,
घंटों खड़े रह कर ,
बाइक का सहारा ले कर ,
कई गीत गुनगुनाते हो ,
या गुटका खाते हो ,
तुम पर सारी दुनिया हँसती है ,
तुम्हारी यह बेखुदी देख ,
मुझको भी हँसी आ जाती है |


आशा

7 टिप्‍पणियां:

  1. बाइक का सहारा ले कर ,
    कई गीत गुनगुनाते हो ,
    या गुटका खाते हो ,
    तुम पर सारी दुनिया हँसती है ,
    तुम्हारी यह बेखुदी देख ,
    मुझको भी भी हंसी आ जाती है |
    --
    बहुत ही बढ़िया रचना लिखी है आपने तो..!

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  2. अक्सर गली ,मोहल्ले और कालेजों में घटित होता रहता है । अच्छा चित्रण ।

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  3. क्या बात है ! आपकी लेखनी से कोई विषय अछूता कैसे रह सकता है ! हर विषय पर आपकी पकड़ मजबूत है और अभिव्यक्ति सशक्त ! रचना पढ़ कर ना जाने कितने दृश्य आँखों के आगे साकार हो गए ! बहुत खूब !

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  4. बहुत अच्छी लगी ये रचना सब कुछ जाना पहचाना है

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  5. बिलकुल शब्द चित्र खींच दिया है.. बहुत बढ़िया ..:):)

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