14 जून, 2010

मान पाने का हक तो सबका बनता है

तुम मेरी हो तुम्हारा अधिकार है मुझ पर ,
लेकिन अपनों को कैसे भूल जाऊँ ,
जिनकी ममता है मुझ पर ,
उन सब से कैसे दूर जाऊँ ,
मैं उनका प्यार भुला न सकूँगा ,
अपनों से दूर रह न सकूँगा ,
क्यों तुम समझ नहीं पातीं ,
क्या माँ की याद नहीं आती ,
जब भी उनसे मिलना चाहूँ ,
कोई बात ऐसी कह देती हो ,
दूरी मन में पैदा करती हो ,
यह तुम्हारी कैसी फितरत है ,
नफरत से भरी रहती हो ,
वो तुम्हारी सास हुई तो क्या ,
वह मेरी भी तो माँ हैं ,
तुमको प्यार जितना अपनों से ,
मेरा भी तो हक है उतना ,
में कैसे भूल जाऊँ माँ को ,
जिसने मुझ को जन्म दिया ,
उँगली पकड़ी, चलना सिखाया ,
पढ़ाया लिखाया, लायक बनाया ,
सात फेरों में तुम से बाँधा ,
तुम्हारा आदर सत्कार किया ,
मान पाने का तो हक उनका बनता है ,
फिर तुमको यह सब क्यूँ खलता है ,
छोटी सी प्यारी सी मुनिया ,
मेरी बहुत दुलारी बहना ,
उसने ऐसा क्या कर डाला ,
तुमने उसको सम्मान न दिया ,
दो बोल प्यार के बोल न सकीं ,
उससे भी नाता जोड़ न सकीं ,
मैं उससे मिल नहीं पाया ,
मैंने क्या खोया तुम समझ न सकीं
केवल अशांति का स्त्रोत बनी
अब तुम्हारी न चलने दूँगा ,
जो सही मुझको लगता है ,
वैसा ही अब मैं करूँगा ,
जिन सबसे दूर किया तुमने ,
उन सब से प्यार बाँटना होगा ,
हिलमिल साथ रहना होगा ,
सभी का अधिकार है मुझ पर ,
केवल तुम्हारा ही अधिकार न होगा ,
तभी कहीं घर घर होगा ,
मेरा सर्वस्व तुम्हारा होगा |


आशा

7 टिप्‍पणियां:

  1. अरे आप तो बेटों की तरफ से लिख रही हैं, बेचारे वे तो मूक बन गए हैं तो माँ ही लीपा पोती करने में लग रही हैं।

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  2. "हिलमिल साथ रहना होगा ,
    सभी का अधिकार है मुझ पर ,
    केवल तुम्हारा ही अधिकार न होगा ,
    तभी कहीं घर घर होगा ,
    मेरा सर्वस्व तुम्हारा होगा|"
    सच्ची और बहुत अच्छी रचना

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  3. Very good. A nice composition highlighting the emotional aspect of a son. Its right. A wife should not expect her husband to forget all the relations only because they don't matter much to her. A very honest and matter of fact poem and of course very touching too.

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  4. बिलकुल ठीक -सटीक स्वच्छ --हर पुरुष के मन का उद्वेग
    बहुत अच्चा लिखा है .
    बधाई

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