तुम मेरी हो तुम्हारा अधिकार है मुझ पर ,
लेकिन अपनों को कैसे भूल जाऊँ ,
जिनकी ममता है मुझ पर ,
उन सब से कैसे दूर जाऊँ ,
मैं उनका प्यार भुला न सकूँगा ,
अपनों से दूर रह न सकूँगा ,
क्यों तुम समझ नहीं पातीं ,
क्या माँ की याद नहीं आती ,
जब भी उनसे मिलना चाहूँ ,
कोई बात ऐसी कह देती हो ,
दूरी मन में पैदा करती हो ,
यह तुम्हारी कैसी फितरत है ,
नफरत से भरी रहती हो ,
वो तुम्हारी सास हुई तो क्या ,
वह मेरी भी तो माँ हैं ,
तुमको प्यार जितना अपनों से ,
मेरा भी तो हक है उतना ,
में कैसे भूल जाऊँ माँ को ,
जिसने मुझ को जन्म दिया ,
उँगली पकड़ी, चलना सिखाया ,
पढ़ाया लिखाया, लायक बनाया ,
सात फेरों में तुम से बाँधा ,
तुम्हारा आदर सत्कार किया ,
मान पाने का तो हक उनका बनता है ,
फिर तुमको यह सब क्यूँ खलता है ,
छोटी सी प्यारी सी मुनिया ,
मेरी बहुत दुलारी बहना ,
उसने ऐसा क्या कर डाला ,
तुमने उसको सम्मान न दिया ,
दो बोल प्यार के बोल न सकीं ,
उससे भी नाता जोड़ न सकीं ,
मैं उससे मिल नहीं पाया ,
मैंने क्या खोया तुम समझ न सकीं
केवल अशांति का स्त्रोत बनी
अब तुम्हारी न चलने दूँगा ,
जो सही मुझको लगता है ,
वैसा ही अब मैं करूँगा ,
जिन सबसे दूर किया तुमने ,
उन सब से प्यार बाँटना होगा ,
हिलमिल साथ रहना होगा ,
सभी का अधिकार है मुझ पर ,
केवल तुम्हारा ही अधिकार न होगा ,
तभी कहीं घर घर होगा ,
मेरा सर्वस्व तुम्हारा होगा |
आशा
bahut hi acchi rachna padhne ko mili..
जवाब देंहटाएंaapki kalam ko pranaam..
ASHA MA,NAMASTE!
जवाब देंहटाएंबहुत उम्दा!! आभार!!
अरे आप तो बेटों की तरफ से लिख रही हैं, बेचारे वे तो मूक बन गए हैं तो माँ ही लीपा पोती करने में लग रही हैं।
जवाब देंहटाएंpurush ki vedna bade achche se ukeri mam...
जवाब देंहटाएं"हिलमिल साथ रहना होगा ,
जवाब देंहटाएंसभी का अधिकार है मुझ पर ,
केवल तुम्हारा ही अधिकार न होगा ,
तभी कहीं घर घर होगा ,
मेरा सर्वस्व तुम्हारा होगा|"
सच्ची और बहुत अच्छी रचना
Very good. A nice composition highlighting the emotional aspect of a son. Its right. A wife should not expect her husband to forget all the relations only because they don't matter much to her. A very honest and matter of fact poem and of course very touching too.
जवाब देंहटाएंबिलकुल ठीक -सटीक स्वच्छ --हर पुरुष के मन का उद्वेग
जवाब देंहटाएंबहुत अच्चा लिखा है .
बधाई