15 जून, 2010

आप जब भी मेरे सामने आती हैं

आप जब भी मेरे सामने आती हैं ,
अपनी पलकों को झुका लेती हैं ,
शायद कुछ कहना भी चाहती हैं ,
मन ही मन कुछ दोहराती हैं ,
मैं समझ के भी अनजान बना रहता हूँ ,
कभी निगाहें भी चुरा लेता हूँ ,
चुप्पी साध लेता हूँ ,
कहना चाहता हूँ बहुत कुछ ,
बात मुँह तक आ कर रुक जाती है ,
फिर सोचता हूँ कोई शेर लिखूँ ,
जिसे पढ़ कर आप ,
मेरे दिल को जान सकें ,
दिल की गहराई नाप सकें ,
कुछ आप भी कोशिश करें ,
कुछ पहल मैं भी करूँ ,
जिससे मन की बातों को ,
इक दूजे से कह पायें ,
मन को अभिव्यक्ति दे पायें |


आशा

5 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत अच्छे भाव लिखे मैम आपने ,
    "मैं समझ के भी ......................गहराई नाप सकें ,
    कभी मेरे साथ ऐसा हुआ था , इसीलिए पढ़कर भावुक हो गया
    thanks for post such good & almost real thought for feelings
    --
    !! श्री हरि : !!
    बापूजी की कृपा आप पर सदा बनी रहे

    Email:virender.zte@gmail.com
    Blog:saralkumar.blogspot.com

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  2. सुन्दर, सशक्त और सार्थक रचना...शुभकामनाएं।

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  3. बहुत खूब ! सुन्दर भावाभिव्यक्ति और मनोभावों का सफल चित्रण १ शुभकामनाएं !

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  4. मन को छू लेने वाली कविता लिखी है आपने। बधाई।

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