होने को है आज
अनोखा त्यौहार दीपावली का
अभिनव रंग जमाया है
स्वच्छता अभियान ने |
दीवारों पर मांडने उकेरे
और अल्पना द्वारों पर
है प्रभाव इतना अदभुद
हर कौना चमचमाया है |
बाजारों में आई रौनक
गहमा गहमी होने लगी
पर फिर भी सबके चेहरों पर
पहले सा उत्साह नहीं |
मंहंगाई की मार ने
आसमान छूते भावों ने
और सीमित आय ने
सोचने को बाध्य किया |
फीका स्वाद मिठाई का
नमकीन तक मंहंगा हुआ
उपहारों की क्या बात करें
सर दर्द से फटने लगा |
लगती सभी वस्तुएँ आवश्यक
रोज ही लिस्टें बनती है
पहले सोचा है व्यर्थ आतिशबाजी
पर बच्चे समझोता क्यूं करते
यदि मना किया जाता
वे उदास हो जाते |
हर बार सोचता हूँ
सबकी इच्छा पूरी करूँ
ढेरों खुशियाँ उनको दूं
पर सोच रह जाता अधूरा |
क्यूँ उडूं आकाश में
हूँ तो मैं एक आम आदमी
और भी हें मुझसे
मैं अकेला तो नहीं
जो जूझ रहा मंहंगाई से |
आशा
अनोखा त्यौहार दीपावली का
अभिनव रंग जमाया है
स्वच्छता अभियान ने |
दीवारों पर मांडने उकेरे
और अल्पना द्वारों पर
है प्रभाव इतना अदभुद
हर कौना चमचमाया है |
बाजारों में आई रौनक
गहमा गहमी होने लगी
पर फिर भी सबके चेहरों पर
पहले सा उत्साह नहीं |
मंहंगाई की मार ने
आसमान छूते भावों ने
और सीमित आय ने
सोचने को बाध्य किया |
फीका स्वाद मिठाई का
नमकीन तक मंहंगा हुआ
उपहारों की क्या बात करें
सर दर्द से फटने लगा |
लगती सभी वस्तुएँ आवश्यक
रोज ही लिस्टें बनती है
पहले सोचा है व्यर्थ आतिशबाजी
पर बच्चे समझोता क्यूं करते
यदि मना किया जाता
वे उदास हो जाते |
हर बार सोचता हूँ
सबकी इच्छा पूरी करूँ
ढेरों खुशियाँ उनको दूं
पर सोच रह जाता अधूरा |
क्यूँ उडूं आकाश में
हूँ तो मैं एक आम आदमी
और भी हें मुझसे
मैं अकेला तो नहीं
जो जूझ रहा मंहंगाई से |
आशा
पहले सोचा है व्यर्थ आतिशबाजी
जवाब देंहटाएंपर बच्चे समझोता क्यूं करते
यदि मना किया जाता
वे उदास हो जाते |
बहुत सुन्दर प्रस्तुति ||
बधाई स्वीकार करें ||
आम आदमी की भला ........किसको है परवाह.....
जवाब देंहटाएंचहुँ ओर पसरी पड़ी..........काली चादर स्याह....
काली चादर स्याह............यहाँ हर मन उदास है...
कोई तो कुछ करे...............मरे की यही आस है...
कह मनोज इतनी बढ़ी........देश में है मंहगाई....
बड़े दिनों से मेरे घर ...........नहिं आशा ताई आई..
सुंदर प्रस्तुति...
जवाब देंहटाएंहर बार सोचता हूँ
जवाब देंहटाएंसबकी इच्छा पूरी करूँ
ढेरों खुशियाँ उनको दूं
पर सोच रह जाता अधूरा ...
...मन में जितनी इच्छाएं होती हैं वे सब पूरी हो जाय तो फिर क्या बात है मन न जाने कहाँ कहाँ भागने लगेगा..
"मेरो मन अनंत कहाँ सुख पावै" को समझती सुन्दर रचना प्रस्तुति हेतु आभार
आम आदमी के जीवन की ऊहापोह और कशमकश को बहुत सशक्त अभिव्यक्ति दी है ! परिवार वालों की आवश्यकताओं की अपरिमित सूची और स्वयम की जेब में पड़े सीमित धन ने आम इंसान को अवसाद की ओर ढकेला है इसमें कोई संदेह नहीं है ! सार्थक रचना ! बधाई !
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया सामयिक रचना ....शुभकामनायें आपको !
जवाब देंहटाएंउत्कृष्ट रचना,बधाई!
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