सहन उन्हें करना पड़ता बिना उनके रहना पड़ता उफ यह नखरा बाई का आये दिन होते नागों का चाहे जब धर बैठ जातीं नित नए बहाने बनातीं यदि वेतन की हो कटौती टाटा कर चली जातीं लगता है जैसे हम गरजू हैं उनके आश्रय में पल रहे हैं पर कुछ कर नहीं पाते मन मसोस कर रह जाते | आशा
:):) गरज तो हमारी ही है
जवाब देंहटाएं:) सच कहा आपने आजकल बाई का काम पर आजाना किसी दुआ से कम नहीं लगता
जवाब देंहटाएंबहुत सही आंटी
जवाब देंहटाएंसादर
sahi bat meri bai bhi 1 mahine ke chhuti par hai .....
जवाब देंहटाएंगरजू समझती ही हैं...सही कहा|
जवाब देंहटाएंsahi baat ko badhiyan dhang se kahi aapne. hum bhi isi kasht ke maare hain :)
जवाब देंहटाएं-Abhijit (Reflections)
:) Sach Kaha Aapne....
जवाब देंहटाएं.रोचक प्रस्तुति.मन को छू गयी .आभार अख़बारों के अड्डे ही ये अश्लील हो गए हैं .
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी प्रस्तुति!
जवाब देंहटाएंअनुशरण कर मेरे ब्लॉग को अनुभव करे मेरी अनुभूति को
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गरजू तो हम ही हैं - नखरे सहने ही पड़ेंगे .उन्हें खुश रखे बिना काम चलेगा क्या ?
जवाब देंहटाएंसही कहा आपने.. कामवाली का नखरा ऊफ़!
जवाब देंहटाएंसही कहा आपने.. कामवाली का नखरा ऊफ़!
जवाब देंहटाएंसभी की दुखती रग पर हाथ रख दिया है आज आपने ! सभी इस कष्ट के मारे हैं ! यहाँ भी कई दिनों से बाई हड़ताल पर है और हम उसकी ड्यूटी पर हैं ! रोचक प्रस्तुति !
जवाब देंहटाएंनखरे तो उठाना ही पडेगा आदरेया.सुन्दर प्रस्तुति.
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