शीशा टूटा
किरच किरच बिखरा
हादसा ऐसा हुआ
तन मन घायल कर गया
तन के घाव भरने लगे
समय के साथ सुधरने लगे
मन के घावों का क्या करे
जिनका कोई इलाज नहीं
यूं तो कहा जाता है
समय के साथ हर जख्म
स्वयं भरता जाता है
खून का रिसाव थम जाता है
पर आज जब जीवन की
शाम उतर
आई है
सब यथावत चल रहा है
पर उन जख्मों में
कोई
परिवर्तन नहीं
रह रह कर
टीस उभरती है
बेचैनी बढ़ती जाती है
उदासी घिरती जाती है |
आभार दीदी-
जवाब देंहटाएंएक और उत्तम रचना-
तन के जख्मों पे लगे, मरहम रोज सखेद |
मन के जख्मों को सगे, जाते किन्तु कुरेद |
जाते किन्तु कुरेद, भेद करते हैं भारी |
ऊपर ऊपर ठीक, किन्तु अन्दर चिंगारी |
होना क्या मुहताज, मोह अब छोडो मन के |
कर के मन मजबूत, खड़े हो जाओ तन के ||
रवि कर जी प्रतिउत्तर की कविता बहुत ही शानदार है |टिप्पणी हेतु आभार
हटाएंआदरणीय आशा जी .. बहुत ही भावपूर्ण रचना .. .. अंतस की गहराई को छूती हुई , मैंने शायद पहली बार पढ़ रहा हूँ बहुत अच्छा लगा ... आपकी इस रचना के लिंक की प्रविष्टी सोमवार (30.09.2013) को ब्लॉग प्रसारण पर की जाएगी, ताकि अधिक से अधिक लोग आपकी रचना पढ़ सकें . कृपया पधारें .
जवाब देंहटाएंपहली बार ब्लॉग पर आए धन्यवाद |
हटाएंआशा
बहुत ही भावपूर्ण रचना .
जवाब देंहटाएंधन्यवाद संजय
हटाएंमन का जख्म जिंदगी भर रहता है
जवाब देंहटाएंनई पोस्ट अनुभूति : नई रौशनी !
नई पोस्ट साधू या शैतान
धन्यवाद कालीपद जी |
हटाएंsundar bhawpurn rachna didi............
जवाब देंहटाएंटिप्पणी हेतु धन्यवाद मुकेश जी |
हटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति.. आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी पोस्ट हिंदी ब्लॉग समूह में सामिल की गयी और आप की इस प्रविष्टि की चर्चा कल - सोमवार - 30/09/2013 को
जवाब देंहटाएंभारतीय संस्कृति और कमल - हिंदी ब्लॉग समूह चर्चा-अंकः26 पर लिंक की गयी है , ताकि अधिक से अधिक लोग आपकी रचना पढ़ सकें . कृपया पधारें, सादर .... Darshan jangra
सूचना हेतु धन्यवाद दर्शन जी |
हटाएंबहुत ही सुन्दर और सार्थक प्रस्तुती,धन्यबाद।
जवाब देंहटाएंटिप्पणी हेतु धन्यवाद |
हटाएंबहुत ही बढ़िया,सुंदर सृजन !!! आशा जी
जवाब देंहटाएंRECENT POST : मर्ज जो अच्छा नहीं होता.
धन्यवाद धीरेन्द्र जी |
हटाएंआपकी इस प्रस्तुति की चर्चा कल सोमवार [30.09.2013]
जवाब देंहटाएंचर्चामंच 1399 पर
कृपया पधार कर अनुग्रहित करें
सादर
सरिता भाटिया
सूचना हेतु धन्यवाद सरिता जी |
हटाएंकल 30/09/2013 को आपकी पोस्ट का लिंक होगा http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
जवाब देंहटाएंधन्यवाद!
सूचना हेतु धन्यवाद यशवंत जी |
हटाएंमन के घावों की टीस तो शायद ताउम्र रहती है.
जवाब देंहटाएंबहरहाल, अछि अभिव्यक्ति के लिए आभार।
सादर,
मधुरेश
हृदय की वेदना को जगाती बहुत ही सुन्दर एवं भावपूर्ण रचना ! पढ़ कर मन उदास हो गया !
जवाब देंहटाएंटिप्पणी हेतु धन्यवाद
हटाएंसुंदर रचना !
जवाब देंहटाएंब्लॉग पर आने के लिए धन्यवाद
हटाएंकुछ जख्म कभी नहीं भरते ... ताज़ा रहते हैं समय के साथ ...
जवाब देंहटाएंटिप्पणी हेतु आभार |
हटाएंबहुत सुन्दर भावमयी रचना...
जवाब देंहटाएंधन्यवाद कैलाश जी |
हटाएंआशा
टिप्पणी हेतु धन्यवाद
जवाब देंहटाएंसुन्दर भावमयी रचना...आभार
जवाब देंहटाएंटिप्पणी हेतु धन्यवाद
हटाएंगहन अभिवयक्ति......
जवाब देंहटाएंblog पर आने के लिए धन्यवाद शुषमा जी
हटाएंआशा
जी आशा जी कुछ टीस होती हैं जीवन की ऐसी जो भरती नहीं ..लेकिन आइये मधुर यादों को सहेजें
जवाब देंहटाएंसुन्दर
भ्रमर ५
टिप्पणी हेतु धन्यवाद सुरेन्द्र जी |
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