हूँ स्वतंत्रता
की पक्षधर 
पर हाथ बंधे हैं 
आजादी का अर्थ  जानती हूँ 
पर जीवन की हर
सांस 
किसी न किसी
परिपाटी में 
उलझी है और 
संस्कारों के बोझ
तले
दबी सहमी है |
स्वतंत्रता है
अधिकार मेरा 
किताबों में पढ़ा
है पर 
आज तक अनुभव न
हुआ
 कर्तव्यों का बोझ लिए
जीवन खडा है |
उदास हूँ 
तरस आता है खुद
पर  
होता अन्धकार हावी
जाने कब होगा
सबेरा |
व्यर्थ की
रोकाटोकी 
अब रास नहीं आती 
अनगिनत वर्जनाएं 
व्यथित करती
जातीं |
अब कोई
बच्ची  नहीं 
जो भय मन में
पालूँ 
कर्तव्य से मुंह
मोड़ कर 
पलायन करूं  |
चाहती हूँ रखूँ 
अस्तित्व अक्षून्य
अपना 
ना हो बाधित 
अभिव्यक्ति की
स्वतंत्रता 
अवाध गति से बढ़ती
जाए 
विचारों की श्रंखला
|
आशा 

बढ़िया,बेहतरीन अभिव्यक्ति...!
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बहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंआपकी उत्कृष्ट प्रस्तुति 06-12-2013 चर्चा मंच पर ।।
जवाब देंहटाएंsundar abhivyakti ..
जवाब देंहटाएंचाहती हूँ रखूँ
जवाब देंहटाएंअस्तित्व अक्षून्य अपना
ना हो बाधित
अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता
अवाध गति से बढ़ती जाए
विचारों की श्रंखला |
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति !
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बहुत ही सार्थक, सशक्त एवँ सुंदर रचना ! आत्म विश्वास और जागरूक होने की ज़रूरत है ऐसा कोई काम नहीं जो आज की नारी ना कर सके ! बहुत बढ़िया !
जवाब देंहटाएंआशाएं पूर्ण हों ...
जवाब देंहटाएंआशा तो सदा ही पूर्ण होती है |
हटाएंआशा
सूचना हेतु धन्यवाद यशवंत जी |
जवाब देंहटाएंआशा
धन्यवाद शास्त्री जी |
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