मैं धरती तू गगन 
कैसे पहुंचू तुझ तक 
दूरी कम न  होती 
यही सह न पाती  |
उग्र हुआ तपता सूरज
तेरा ताप न कम होता 
मैं कैसे धीर धरूं 
शीतल हो न पाऊँ |
रेल की पटरियों सी 
जीवन शैली दोनों की 
चलती जाती दूर तलक 
दूरी कम न होती |
हम दो ध्रुव धरा के 
एक साथ नहीं होते 
पर 
है बहुत समानता 
जिसे झुटला नहीं सकते |
यही बात मुझे तुझ तक 
जाने कब ले आती है 
दूरी दूरी नहीं लगती 
जब तेरी पाती आती  |
आशा 
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
Your reply here: