
नौका डूबती मझधार में 
उर्मियों से जूझ रही 
है समक्ष भवर की बिछात 
उससे बचना चाह रही |
जल ही जल आस पास 
जीवन की कोई न आस 
मस्तिष्क भाव शून्य हुआ 
सोच को ग्रहण लगा |
हुआ दूभर तर पाना 
भव बाधा से बच पाना 
मेरी नैया पार करो
 भावांजलि स्वीकार करो |
इस पार या उस पार 
मझधार में ना कोई सार 
यदि पार लग पाऊँ 
श्रद्धा सुमन अर्पित करूं |
आशा 
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