25 जुलाई, 2014

अहम्






Photo
मैं आज अपनी ९०० वी पोस्ट आप सब तक पहुंचा रही हूँ |आशा है आपको पसंद आएगी |

गैरों से मेल अपनों से गिला
है बात बहुत अजीब सी
ना हो  तुम किसी की
ना कोई तुम्हारा मीत मिला |
 यह तुमने क्या किया
किस बात का बदला लिया
मैं निरीह देखता रहा
गिला शिकवा न किया |
क्यूं रूठीं कारण न बताया
यदि हाथ मिला लिया होता 
कुछ तो हल निकलता 
आलम उदासी का न होता |
जानता हूँ हो रूप गर्विता
अभिमानी हो  पाषाणी नहीं
पर निष्ठुर हो जान नहीं पाया 
तुम्हें पहचान नहीं पाया |
जब पीछे से कोई वार करेगा
तभी जान पाओगी
 कितना दुःख होता है
ऐसे किये व्यवहार से  |
वार चाहे जैसा भी हो
अस्त्र का या शब्दों का
शूल सा चुभता है
जीना दूभर होता है |
जब अहम् टकराते  है
प्रतिउत्तर नहीं सूझता
अस्तित्व सिमट जाता है
मन के किसी कौने में |
आशा

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

Your reply here: