मैं आज अपनी ९०० वी पोस्ट आप सब तक पहुंचा रही हूँ |आशा है आपको पसंद आएगी |
गैरों से मेल अपनों से गिला
गैरों से मेल अपनों से गिला
है बात बहुत अजीब सी 
ना हो तुम किसी की
ना हो तुम किसी की
ना कोई तुम्हारा मीत मिला |
 यह तुमने क्या किया 
किस बात का बदला लिया 
मैं निरीह देखता रहा 
गिला शिकवा न किया |
क्यूं रूठीं कारण न बताया 
यदि हाथ मिला लिया होता 
कुछ तो हल निकलता
कुछ तो हल निकलता
आलम उदासी का न होता |
जानता हूँ हो रूप गर्विता 
अभिमानी हो  पाषाणी नहीं 
पर निष्ठुर हो जान नहीं पाया 
तुम्हें पहचान नहीं पाया |
तुम्हें पहचान नहीं पाया |
जब पीछे से कोई वार करेगा 
तभी जान पाओगी
 कितना दुःख होता है 
ऐसे किये व्यवहार से  |
वार चाहे जैसा भी हो 
अस्त्र का या शब्दों का 
शूल सा चुभता है 
जीना दूभर होता है |
जब अहम् टकराते  है 
प्रतिउत्तर नहीं सूझता 
अस्तित्व सिमट जाता है 
मन के किसी कौने में |
आशा 
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