आँगन में जल भरा 
चिड़िया आती 
दाना खाती पानी पीती 
पंख डुबोती नहाती
जल्दी से उन्हें सुखाती 
भूख उसे नहीं है 
फिर भी मन चंचल 
स्थिर नहीं है 
कोई जान नहीं पाता 
उसकी चिंता वही जानती 
चाहती उड़ना 
समीप के वृक्ष पर 
जहां है उसका बसेरा 
बच्चे राह देखते होंगे 
चौंच में कीड़ा दबा कर 
भरती उड़ान उस ओर
चूं चूं करते बच्चों को
चूं चूं करते बच्चों को
प्यार से खिलाती 
 और समेट लेती उन्हें 
अपने पंखों के नीचे 
कोई जाने या न जाने 
माँ का दुलार
माँ का दुलार
पर बच्चे जानते हैं 
है माँ क्या उनके लिए |
आशा 
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
Your reply here: