चाँद सा दूल्हा न
सज पाया 
घोडी चढ़ा पर बरात
न गई 
दुलहन बिनब्याही
ही रही  
कारण से अनजान थे
जो 
सच से थे वे दूर बहुत
असली बात न जान
पाए 
फिकरेबाजी करते
रहे 
सर पर पगड़ी
मूंछों पर ताव  
मांग  इतनी तगड़ी थी 
दंभ भरी आवाज थी 
सारी फसाद की जड़ था
सारी फसाद की जड़ था
दूल्हे का पिता
वही था 
पर लाठी बेआवाज
थी 
मांग पूरी न हो
पाई 
शादी की बात कहाँ
से आई 
 लौट रही बरात थी 
बिन व्याही दुलहन
खड़ी 
पुलिस की दविश
पडी 
हवालात की कोठारी
खुली 
अब ना वह अकड़ रही
 और न मूछों पर ताव 
जमानत तक के लाले
पड़े
मच गया कोहराम 
पर गर्व पिता को
था बेटी पर 
जो जूझी दहेज़ के
दानव से 
अंत में विजयी   हुई 
इस समाज की कुरीति
से |

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