स्वप्न था या सत्य था
सोचने का ना वक्त था
फिर भी खोया स्वप्नों में
जूनून नहीं तो और क्या था
पलकों से द्वार किये बंद
दस्तक पर भी अवधान न था
पर वे बेझिझक आये
बिना द्वार खटखटाए
यह मन का भरम नहीं
तो और क्या था
एक पल भी न ठहरा
दृश्य बदल गया
मन से वह तब भी न गया
यह ख्याल था या जुनून था |
जागती आँखे देखती उसे
कभी समक्ष न होता
पलक बंद करते ही
फिर जीवंत होता
यही खेल दिन भर के लिए
व्यस्तता का सबब होता
एक अनूठा अनुभव होता
तभी संशय मन में होता
इसे क्या कहा जाए
स्वप्न या उसका जूनून |
आशा
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