पहले कहा जाता था
दाल दलिया से
 काम चल जाता है
सस्ते में गुजारा हो जाता है 
सब्जी भाजी मिले न मिले 
दाल रोटी से
 पेट भर जाता है 
बच्चों को माँ कहती थी 
अरहर दाल यदि खाओगे
 प्रोटीन प्रचुर पाओगे 
साथ ही गुनगुनाती थी 
दाल रोटी खाओ
 प्रभु के गुण गाओ 
अब बदलाव भारी आया है 
जब से उछाल 
 भावों में आया है 
भाषा बदल गई है 
अब कहा जाता है 
लौकी पालक से
 काम चल जाएगा 
मंहगी दाल कौन खाएगा 
जंक फूड से काम चलाओ 
यूं ही मझे ना सताओ 
दाल बनाना नहीं जरूरी 
समझो मेरी मजबूरी
समझो मेरी मजबूरी
सब्जी आलू की खाने से 
मन तो भर ही जाएगा 
दाल की कमी
 तब न खलेगी 
जेब अधिक खाली ना होगी |
आशा 
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