एक दिन उसने कहा 
कभी दूर न जाना 
स्वप्नों में आना 
आ कर न जाना |
कहा उसका मान लिया 
लगाया अंकुश प्रवाह पर 
कुछ क्षण ठहराना चाहा 
रुकने का मन बनाया |
रुकने का मन बनाया |
मन को बंधन स्वीकार नहीं
रुकना उसकी फितरत नहीं 
पर जाने की चाह नहीं 
दुविधा आन पड़ी |
विद्रोही आदत से मजबूर 
अस्थिर अधीर मन 
कशमकश से विचलित 
बगावत पर उतर आया |
छिड़ी जंग मन और ह्रदय में 
हो कौन  विजयी रब  जाने 
है जान सांसत में अभी तो 
किसकी माने न माने |
भावुकता कम न होती 
बुद्धि भी हावी होती 
उलझन बढ़ती  जाती 
विचार शून्य सी हो जाती |
यही हाल यदि रहा 
कैसे निर्णय तक पहुंचूंगी 
मन पर नियंत्रण न होगा 
ना ही दिल काबू में होगा |
नीव जीवन की हिल जाएगी
मंजिल दूर नजर आयेगी
अनिर्णय की स्थिति में
वह बोझ हो जाएगी |
आशा
नीव जीवन की हिल जाएगी
मंजिल दूर नजर आयेगी
अनिर्णय की स्थिति में
वह बोझ हो जाएगी |
आशा
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
Your reply here: