मीरा ने घर वर त्यागा
लगन लगी जब मोहन से
विष का प्याला पी लिया
शीष नवाया चरणों में |
सूर सूर ना रहे
कृष्ण भक्ति की छाया में
सूर सूर ना रहे
कृष्ण भक्ति की छाया में
सारा जग कान्हां मय लगता
तन मन भीगा उनमें |
तुलसी रमें राम भक्ति में
रामायण रच डाली
राम रसायन ऐसा पाया
भक्ति मार्ग अपनाया |
एक रूप प्रेम का भक्ति
लगती बड़ीअनूप
नयन मूँद करबद्ध हो
जब शीश झुके प्रभु चरणों में |
आशा
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (09-10-2019) को "विजय का पर्व" (चर्चा अंक- 3483) पर भी होगी। --
जवाब देंहटाएंसूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--विजयादशमी कीहार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
सुप्रभात
हटाएंसूचना के लिए धन्यवाद सर |
भक्ति और प्रेम का यह रूप अद्भुत है ! बहुत सुन्दर रचना !
जवाब देंहटाएंटिप्पणी के लिए धन्यवाद साधना |
जवाब देंहटाएंसुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंधन्यवाद ओंकार जी टिप्पणी के लिए |
हटाएंसूचना हेतु आभार श्वेता जी |
जवाब देंहटाएंभक्ति और प्रेम एक ही सिक्के के दो पहलु ही तो हैं ,सादर नमन आशा दी
जवाब देंहटाएंबहुत खूब लिखा आपने आशा जी ।प्रेम से ओत-प्रोत वाली भक्ति।
जवाब देंहटाएंभक्ति भी प्रेम का ही एक रूप है इसका सुंदर चित्रण आशा दीदी।
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