08 अक्तूबर, 2019

एक रूप प्रेम का


मीरा ने घर वर त्यागा 
लगन लगी जब मोहन से
 विष का प्याला पी लिया
शीष नवाया चरणों में |
सूर सूर ना रहे
कृष्ण भक्ति की छाया में 
सारा जग कान्हां मय लगता 
तन मन भीगा उनमें  |
तुलसी रमें राम भक्ति में 
रामायण रच डाली
राम रसायन ऐसा पाया 
भक्ति मार्ग अपनाया |
एक रूप प्रेम का भक्ति 
लगती बड़ीअनूप
नयन मूँद करबद्ध हो 
जब शीश झुके प्रभु चरणों में |
आशा

10 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (09-10-2019) को    "विजय का पर्व"   (चर्चा अंक- 3483)     पर भी होगी। --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है। 
     --विजयादशमी कीहार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'  

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  2. भक्ति और प्रेम का यह रूप अद्भुत है ! बहुत सुन्दर रचना !

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  3. टिप्पणी के लिए धन्यवाद साधना |

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  4. भक्ति और प्रेम एक ही सिक्के के दो पहलु ही तो हैं ,सादर नमन आशा दी

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  5. बहुत खूब लिखा आपने आशा जी ।प्रेम से ओत-प्रोत वाली भक्ति।

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  6. भक्ति भी प्रेम का ही एक रूप है इसका सुंदर चित्रण आशा दीदी।

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