हो तुम अनोखे शिल्पी
एक से एक मूर्तियाँ
बनाते
प्राण प्रतिष्ठा
उनमें करते
लगता है ऐसा जैसे
हो जीवंत
अभी हलचल में आएंगी
मन में उनके है क्या
मुखरित हो बयान
करेंगी
यूँ तो नयन और
लव रहते मौन सदा
हरपल ऐसा लगता है
सीपी सम्पुट खोलेगी
शब्दों का स्त्राव
करेगी
भावनाओं में बह कर
अभी बोल पड़ेगी
चंचल चितवन से मन को
मोहे लेगी ऐसा जैसे
जन्नत की सैर करा
देगी
हर रंग जो तुमने
चुना है
सदाबहार लगता है
उससे सजाए परिधान
बड़े सुहाने लगते हैं
दिल चाहता है बस
एकटक निहारते ही रहें
मन में बसा लें
उन्हें |
आशा
आशा
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" में रविवार 05 जनवरी 2020 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंसुप्रभात
हटाएंसूचना के लिए धन्यवाद यशोदा जी |
सुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंक्या बात है ! बड़ी ही जीवंत एवं सुन्दर रचना ! बहुत खूब !
जवाब देंहटाएंटिप्पणी के लिए धन्यवाद साधना |
हटाएंबहुत सुंदर सृजन
जवाब देंहटाएंधन्यवाद ज्योति जी टिप्पणी के लिए |
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