उसने दिल का दामन बचाया कहाँ है
प्रभू से कुछ भी नहीं चाहा है
मोहब्बत का फलसफा सुलझाया कहाँ है |
अभी तो हाथ जोड़े हैं नमन किया है
मंदिर में भोग लगाया कहाँ है
अभी तो स्वच्छता की है मंदिर की
बुझते दीपक को जलाया कहाँ है |
दी है परीक्षा प्रभु के समक्ष
नतीजे की अपक्षा को छिपाया कहाँ है
वह भी राह देख रहा है
ईश्वर को भोग चढ़ाया कहाँ है |
है मन
के भावों की पारदर्शिता आवश्यक
उसने किसी को झुटलाया कहाँ है
प्यार प्रेम वह नहीं जानती
उसने मन के भावों को छिपाया कहाँ है |
आशा
आशा
सुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंधन्यवाद ओंकार जी टिप्पणी के लिए |
जवाब देंहटाएंवाह ! बढ़िया रचना ! अति सुन्दर !
जवाब देंहटाएंसुप्रभात
हटाएंटिप्पणी के लिए धन्यवाद साधना |
आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 26.3.2020 को चर्चा मंच पर चर्चा - 3652 में दिया जाएगा। आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ाएगी
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
दिलबागसिंह विर्क
सूचना हेतु आभार दिलबाग जी |
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