ढलने लगी शाम
धुंधलका बढ़ने लगा
रात्रि ने किया आगाज
शमा जली महफिल में
रौशन समा होने लगा
वायु बेग से लौ उलझी
हिलाने डुलने लगी
शमा में आया निखार
अनोखा रंग जमा महफिल में
मौसम खुशरंग हुआ
चंचल चित्त शलभ तभी
हुए आकृष्ट शमा की ओर
गाते गुनगुनाते
खिचे चले आए
उस ओर जहां थी रौशनी
उन्हें भय नहीं था
निकट जाने का
पहले पंख जले उनके
फिर भी न हटे वहां से
पूरे जोश से फिर से उड़े
पहले लड़खड़ाए फिर सम्हले
अब इतने करीब आए
कि जान ही भेट चढ़ा बैठे
रहा संतोष उन्हे इस बात का
कि शमा का साथ पा लिया
प्रेम प्रदर्शन किया
पल भर को ही सही
शमा रात भर जलती रही
रौशन किया महफिल को
परहित के लिए
पर शलभ हुए उत्सर्ग
शमा का साथ पाने के लिए
अपना प्रेम शमा के लिए
सब को दर्शाने के लिए |
आशा
0
शमा और शलभ को लेकर रची गयी सुन्दर रचना।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद सर टिप्पणी के लिए |
हटाएंआपकी इस प्रस्तुति का लिंक 28.5.2020 को चर्चा मंच पर चर्चा - 3715 में दिया जाएगा
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
दिलबागसिंह विर्क
वाह ! बहुत सुन्दर सृजन !
जवाब देंहटाएंवाह !बहुत सुंदर सृजन आदरणीया दीदी जी.
जवाब देंहटाएंसादर प्रणाम
धन्यवाद अनीता जी टिप्पणी के लिए |
जवाब देंहटाएं