स्वप्नों की चौपाल सजी है
कोई व्यवधान न आने दूंगी
बंद आँखों पर चश्मा चढ़ा है
चित्र धूमिल न होने दूंगी |
एक ही अरमां रहा शेष अब
जागते हुए भी उसी में खोई रहूं
मेरा है विश्वास अडिग यह
भावनाओं पर नियंत्रण रखूँ |
केवल कल्पना ही कल्पना हो
और न हो कोई ठोस कार्य
क्या यह गलत नहीं है ?
दिन रात सपनों में खोए रहना
जीवन ऐसे नहीं चलता है |
मनुज को अकर्मण्य बना देता है
इसी लिए ठोस धरातल पर
सजाऊँगी चौपाल स्वप्नों की
वहीं उन्हें साकार करूंगी |
आशा
ये स्वप्नों की चौपाल सजी रहे । सुंदर और आत्मविश्वास से भरी रचना ।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद संगीता जी टिप्पणी के लिए |
हटाएंबहुत सुन्दर।
जवाब देंहटाएंसुप्रभात
हटाएंधन्यवाद टिप्पणी के लिए सर |
सुप्रभात
जवाब देंहटाएंमेरी रचना की सूचना के लिए आभार सहित धन्यवाद |
बहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंThanks for the comment sir
जवाब देंहटाएंशुभ संकल्प है सपने साकार करने का.तथास्तु!
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर रचना
जवाब देंहटाएंThanks for the comment
हटाएंवाह वाह ! सार्थक संकल्प ! तथास्तु !
जवाब देंहटाएंThanks for the comment
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