प्रेम,प्रीत प्यार भक्ति स्नेह केअर्थों में
थोड़ा ही अंतर होता है वह भी जिस ढंग से
प्रयोग किये जाएं कैसे सही प्रयोग हो
किस के लिए उपयोग में आएं |
मन में उठती आकर्षण की भावनाएं
मोहताज नहीं होतीं किसी संबोधन की
हर शब्द है अनमोल
उन्हें व्यक्त करने के लिए |
प्रीत प्रेम होते निहित भक्ति में
अवमूल्यंन उसका नहीं किया जाता
स्नेह है शब्द बहुत सीधा सरल
बडे छोटे सभी के लिए उपयोग में आता |
इसमें आसक्ति की भावना नहीं होती
प्रियतम प्रिया आसक्ति दर्शाते अपनों में
सामान उम्र के लोगों को प्रिय होते
पर हर रिश्ते के लिए नहीं |
एक ही शब्द भावात्मकता दर्शाता
जिसकी है जैसी नजर वही उसे वैसा नजर आता
प्रणय प्रीत की भावना होती केवल अपनों के लिए
गैरों के लिए किये उपयोग गलत मनोंव्रत्ति दरशाते |
आशा
सादर नमस्कार ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (16-2-21) को "माता का करता हूँ वन्दन"(चर्चा अंक-3979) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
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कामिनी सिन्हा
आभार सहित धन्यवाद कामिनी जी मेरी पोस्ट की सूचना के लिए |
हटाएंसुन्दर
जवाब देंहटाएंधन्यवाद आपको आलोक जी टिप्पणी के लिए |
हटाएंबहुत सार्थक अभिव्यक्ति।
जवाब देंहटाएंवाह वाह ! बहुत सटीक व्याख्या की है हर शब्द की ! हर शब्द हर किसीके लिए प्रयुक्त नहीं किया जा सकता ! सार्थक सृजन !
जवाब देंहटाएंधन्यवाद साधना टिप्पणी के लिए |
हटाएंवाह! सुन्दर।
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
हटाएंधन्यवाद सधु जी टिप्पणी के लिए |
हटाएंशब्दों के अंतर को स्पष्ट समझना बहुत ज़रूरी है ... स्पष्ट बात रक्खी है रचना में ...
जवाब देंहटाएंधन्यवाद नासवा जी टिप्पणी के लिए |
जवाब देंहटाएंसुन्दर बहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंThanks for the comment
हटाएंबिल्कुल सही । भले ही पर्यायवाची हों शब्द लेकिन उपयोग करते हुए अंतर स्पष्ट हो जाता है ।सटीक प्रस्तुति ।
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