भक्ति रूप में मीरा पहचानी
शेष हुए अनुयाई तुम्हारे
क्या कोई रिक्त स्थान नहीं
बचा है हमारे लिए |
२-प्रतिभा की कोई कद्र नहीं
अकुशल सर पर नाच रहे
है यह कैसा न्याय प्रभू
तुम हमें क्यूँ नकार रहे |
३-तुम्हारे दर पर खड़ा याचक
चाहता वरद हस्त तुम्हारा
,कोई कितनी भी आलोचना करे
पर तुम न बदल जाना |
४-बासंती पवन चली चहुओर
खेतों में और खलियानों में
वासंती पुष्पों ने घेरा सारे परिसर को
मन हुआ अनंग किया विचरण बागों में |
आशा
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज मंगलवार 16 फरवरी 2021 को साझा की गई है......... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंआभार यशोदा जी सूचना के लिए |
हटाएंसुन्दर क्षणिकाएं !
जवाब देंहटाएंधन्यवाद साधना टिप्पणी के लिए |
हटाएंसुन्दर सृजन, बसंत के निःश्वासों से गुथी रचना मुग्ध करती है।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद शांतनु जी टिप्पणी के लिए|
हटाएंआभार सर सूचना के लिए |
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