धूप छाव में जंग छिड़ी
आदित्य किरणों की चमक दिखी
कभी काली धटाएं छाईं
हुआ आसमां स्याह |
याद आई उस सावन की
मंहदी कजरी तीज की
इन्तजार रहता था तब
अम्मा के बुलावे का |
सतरंगा लहरिया लाई बूंदी से
पहन ओढ़ सजी सवारी थी
तीज पूजने के लिए
पहनी धानी चूनर ऊपर से |
याद आया वो नीम का पेड़
| झूला किया गया तैयारजिसकी डाली पर
रस्सी पटरी मंगवाई बीकानेर से
खूब झूलने का मजा लिया था |
झूले पर पेंग बढ़ाना याद रहा
गाई कजरी ढोलक की थाप पर
सहेली बरसों बाद मिली थी
ठुमके लगाए थे जम कर |
उस मौसम की रंगीन फिजा
फिर बापस न आई
पर यादों में जगह उसने गहरी बनाई
बारम्बार उस सावन की यादें नयनों में बसी रहीं|
आया सावन झूम के रिमझिम
मन डोला मेरा यह देख कर
बूंदे टपक रहीं धरा पर
झूल रही गौरी झूले पर |
आशा
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धूप छाँव में जंग छिड़ीकभी आदित्य किरणों की चमक दिखीधूप छाँव में जंग छिड़ी कभी आदित्य किरणों की चमक दिखी कभी धुधलका बादलों का छाया मन डोला यह सब देख |याद उस सावन की आई याद आई उस सावन की हुई तीव्र कजरी तीज की इन्तजार तब रहता था अम्मा के बुलावे याद आया वो नीम का पेड़झूला किया गया तैयार जिसकी डारस्सी पटली मंगवाई थी वीकानेर खूब झूलने का मजा लिया था झूले पर पेंग बढ़ाना यगाई कजरी ढोलक की थाप पर
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बहुत बहुत मधुर सुन्दर
जवाब देंहटाएंसुप्रभात
जवाब देंहटाएंधन्यवाद आलोक जी टिप्पणी के लिए |
सुन्दर शब्द चित्र खींचा है ! सावन का तो आनंद ही कुछ और है !
जवाब देंहटाएंसुप्रभात
जवाब देंहटाएंधन्यवाद साधना टिप्पणी के लिए |