सात रंगों में सिमटी सृष्टि
आज प्रातः काल व्योम में देखा
एक आकर्षक सतरंगा इंद्र धनुष
था इतना बड़ा कि छूने लगा
सड़क के दोनो किनारों को |
पर प्रमुख रंग दीखे पांच ही
सोचा दो रंग कहाँ खो गए
यह धनुष कहलाता सतरंगा है
पर छिपना उन दो रगों की आदत है |
उनकी लुका छिपी देख मन हुआ प्रफुल्लित
काफी देर तक वह नीलाम्बर में दिखाई दिया
फिर लुप्त हो कर रह गया पर आँखों में सजीब हुआ
अपनी छवि यादों में छोड़ गया |
ये सात रंग हैं सृष्टि की अनमोल धरोहर
हर जगह दिखाई देते दुनिया रंगीन बनाते
जहां भी आकर्षण दीखता
इनकी ही उपलब्धि होता |
आशा
सुप्रभात
जवाब देंहटाएंआभार मीना जी मेरी रचना की सूचना के लिए |
सुप्रभात
जवाब देंहटाएंधन्यवाद विन्भारती जी टिप्पणी के लिए
ये सात रंग हैं सृष्टि की अनमोल धरोहर
जवाब देंहटाएंहर जगह दिखाई देते दुनिया रंगीन बनाते
जहां भी आकर्षण दीखता
इनकी ही उपलब्धि होता |..... बहुत सुंदर!!!
Thanks for the comment sir
हटाएंबहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंThanks for the comment sir
हटाएंबहुत सुंदर रचना...
जवाब देंहटाएंThanks for the comment
हटाएंबहुत खूबसूरत इंद्रधनुषीय रचना ।
जवाब देंहटाएंThanks for the comment sir
हटाएंबहुत सुंदर रचना
जवाब देंहटाएंसुप्रभात
जवाब देंहटाएंधन्यवाद अनुराधा जी टिप्पणी के लिए |
सुप्रभात
जवाब देंहटाएंधन्यवाद ज्योति जी टिप्पणी के लिए |
आपने सही कहा रंगों के कारण ही दुनिया इतनी खूबसूरत दिखती है। सुंदर रचना।
जवाब देंहटाएंसुप्रभात
जवाब देंहटाएंधन्यवाद विकास जी टिप्पणी के लिए |
वाह ! इंद्र धनुष सी ही रंगीन रचना ! बहुत सुन्दर !
जवाब देंहटाएंसुप्रभात
जवाब देंहटाएंधन्यवाद साधना टिप्पणी के लिए |