मैंने कब तुमसे अपेक्षा रखी
बिना किसी प्रलोभन के
दिन रात आराधना तुम्हारी की
बदले में कभी कुछ चाहा नहीं |
तब भी तुमने
एक न सुनी मेरी
एकबार भी तुम
अरदास सुन न पाए मेरी |
मन में विचार भी आया
क्या कोई मांगे तभी
तुम्हारी नजर होगी उस पर
मेरा विश्वास डगमगाया है |
यह कहना है ही झूठा
“बिन मांगे मोती मिले
मांगे मिले न भीख “|
बिना मांगे किसी को
कुछ भी नहीं मिलता
अब मन नहीं होता
किसी बात पर विश्वास का |
आशा
बहुत बहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंThanks for the comment sir
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रस्तुति का लिंक 15-07-2021को चर्चा – 4,126 में दिया गया है।
जवाब देंहटाएंआपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ाएगी।
धन्यवाद सहित
दिलबागसिंह विर्क
Thanks for the information of the p o st
जवाब देंहटाएंअपने आराध्य से रूठने का अधिकार हर भक्त के पास होता है ! सुन्दर भावपूर्ण रचना !
जवाब देंहटाएंधन्यवाद साधना टिप्पणी के लिए |
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