14 जुलाई, 2021

अपेक्षा तुमसे


 

मैंने कब तुमसे अपेक्षा रखी

 बिना किसी प्रलोभन के

दिन रात आराधना तुम्हारी की

बदले में कभी  कुछ चाहा नहीं  |

तब भी तुमने

 एक न सुनी  मेरी 

एकबार  भी तुम 

अरदास सुन न पाए मेरी |

मन में विचार  भी  आया 

 क्या कोई मांगे तभी

तुम्हारी नजर होगी उस पर 

मेरा  विश्वास  डगमगाया है |

यह कहना  है ही  झूठा

“बिन मांगे मोती  मिले

 मांगे मिले न भीख “|

बिना मांगे  किसी को 

 कुछ भी नहीं मिलता

अब मन नहीं होता

 किसी बात पर विश्वास का |

आशा

6 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 15-07-2021को चर्चा – 4,126 में दिया गया है।
    आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ाएगी।
    धन्यवाद सहित
    दिलबागसिंह विर्क

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  2. अपने आराध्य से रूठने का अधिकार हर भक्त के पास होता है ! सुन्दर भावपूर्ण रचना !

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  3. धन्यवाद साधना टिप्पणी के लिए |

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