यादों की बरात चली
बैंड बाजों के साथ
मैं चला ले कर जखीरा साथ
बीते कल की यादों का |
घोड़े पर बैठ कर दीखती
क्या शान है
मधुर स्वर में बज रहा
हर साज आज है |
पीछे चले घरवाले
गीत संगीत का आनंद लेते
लोकगीतों का मजा उठाते
दूरी मालूम ही न पडी |
दुलहन का घर आते ही
हुई थकान पर क्या करूं
इतना तो चलना बनाता ही है
बिना दूल्हा क्या रौनक होती बारात की |
हर पल याद पुरानी आती
पुरानी घटनाएं
मन पर हो सबार
उन्हें और उछाल देतीं |
मन का बोझ तिल भर भी
तुम्हारी कमी कैसे पूरी होती
तुम्हारा स्थान भी
कोई ले नहीं सकता |
आशा
|
बहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंवाह ! क्या बात है ! खूब रही यह बैंड बाजा बरात !
जवाब देंहटाएं