कभी प्यार से दुलार से
कभी धमका चमका कर
हर बार डराया है समाज ने
बिना किसी उद्देश्य के |
जब चाहा कटघरे में खड़ा किया
कारण जानने का भी हक़ न दिया उसे
रखा सदा वंचित सामाजिकता के एहसास से
यह कैसा न्याय किया उससे |
कोई ऐसा अपराध न था उसका
जिसके लिए प्रताड़ित किया गया उसे
क्षमा दान में भी की कंजूसी
क्या थी आवश्यकता उसके निष्कासन की |
आज तक समझ में न आई यह गुत्थी
आवश्यकता समाज की उसके लिए थी
अथवा समाज को जरूरत उसकी
या दोनों हैं अनुपूरक एक दूसरे के |
आशा
बहुत बहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंसुप्रभात
जवाब देंहटाएंधन्यवाद आलोक जी टिप्पणी के लिए |
सार्थक सृजन ! सुन्दर रचना !
जवाब देंहटाएंसुप्रभात
जवाब देंहटाएंधन्यवाद साधना टिप्पणी के लिए |