03 अक्तूबर, 2021

काला कागा


 

वर्ष भर तो याद न किया
कागा अब क्यों याद आया
पहले जब भी मुडेर पर बैठते
बच्चे तक तुम्हें उड़ा देते थे
पर अब बहुत आदर सत्कार से
बुलाकर सत्कार किया जाता तुम्हारा
ऐसा क्यों किस लिए ?
क्या तुम में भी पितर बसते हैं
या यह मेरी केवल कल्पना है |
तुम भी काले कोयल भी काली
पर स्वर तुम्हारे कर्ण कटु होते
कोयल मीठी तान सूनाती
अमराई में जब गाने गाती
|उससे तुम्हारा मन भोला भाला
तुम्हारा घरोंदा ही उसके
बच्चों का पालना होता
कोई उसकी चालाकी जान न पाता
है ऐसा क्या तुममें विशेष
मैं आज तक जान न पाई
कागा कोयल एक् से
अंतर ना कर पाई |
आशा

7 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन  में" आज रविवार 03 अक्टूबर  2021 शाम 3.00 बजे साझा की गई है....  "सांध्य दैनिक मुखरित मौन  में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  3. प्रश्न बहुत सटीक है आशा जी! पर भोला कौआ कहां एक विदूषी के प्रश्न का उत्तर दे पाने में सक्षम है 😀 संभवतः हमारे पुरखों ने काक महाशय में ऐसा कुछ अवश्य देखा होगा जिससे इसे पुरखों के प्रतिरुप में, स्थापित कर मान्यता दी। कौए से ये रोचक
    मासूम-सा संवाद अच्छा लगा। हार्दिक शुभकामनाएं आपके लिए 🙏👌🌷🌷

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  4. पशु पक्षियों से भी इंसान का ज़रुरत भर का सम्बन्ध रह गया है ! बहुत चिंतन परक सशक्त रचना !

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