खुद्दारी है आवश्यक
यदि समझे न अर्थ इसका
तो क्या जान पाए
अपने को न पहचान सके तो क्या किया |
हर बात पर हाँ की मोहर लगाना
नहीं होता कदाचित यथोचित
कभी ना की भी आवश्यकता होती है
अपनी बात स्पष्ट करने के लिए |
दर्पण में अपनी छवि देख
अपने विचारों में अटल रहना
स्वनिर्णय लेना है आवश्यक
अपने आचरण में परिवर्तन न हो
है यही खुद्दारी सरल शब्दों में |
अपनी बात पर अडिग रह
सही ढंग से कोई कार्य करना
अपनी बात भी रह जाए
और किसी की हानि न हो |
स्वनिर्णय आता खुद्दारी के रूप में
यदि होना पड़े इस से दूर
तब दूसरों की जी हुजूरी कहलाती
और खुद्दारी नहीं रहती |
जीवन की सारी घटनाएं इससे सम्बंधित होतीं
खुद्दारी आत्म विश्वास में वृद्धि करती
मन को चोटिल होने से बचाती
सफल जीवन जीने की राह दिखाती |
आशा
आधारभूत बात कही है आपने। बहुत सुन्दर।
जवाब देंहटाएंसुप्रभात आदरणीय बैरागी जी टिप्पणी के लिए धन्यवाद |
हटाएंसुप्रभात
जवाब देंहटाएंमेरी रचना की सूचना के लिए आभार कामिनी जी |
सुन्दर
जवाब देंहटाएंThanks for the comment sir
हटाएंबहुत अच्छी रचना
जवाब देंहटाएंकभी वक़्त निकाल कर मेरे ब्लॉग पर भी आइए 🙏
हटाएंसुन्दर सार्थक रचना ! बहुत बढ़िया !
जवाब देंहटाएंThanks for the comment sadhna Vaid
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